Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 111
________________ दस ( १ ) व्यवहार सागर, ( २ ) उद्धार सागर एवं (३) अद्धा सागर । दस कोड़ा - कोड़ी व्यवहार पल्यों का एक व्यवहार सागर, कोडा - कोडी उद्धार पल्यों का एक उद्धार सागर और दस कोड़ा कोड़ी अद्धा पल्यों का एक अद्धा सागर होता है । १८६. प्रश्न : योजन किसे कहते हैं ? उत्तर : चार हाथ का एक धनुष होता है। दो हजार धनुष का एक कोस होता है एवं चार कोस का एक योजन होता है । १८७ प्रश्न: मनुष्यलोक एवं तिर्यग्लोक में कितने अकृत्रिम जिन चैत्यालय हैं ? उत्तर : मनुष्यलोक में ३६८ अकृत्रिम जिन चैत्यालय हैं तथा नन्दीश्वर द्वीप में ५२, कुण्डलगिरि पर ४ और रुचकगिरि पर ४, इस प्रकार तिर्यग्लोक में ६० अकृत्रिम जिन चैत्यालय हैं। इस प्रकार मध्यलोक में कुल ( ३६८+६० ) - ४५८ अकृत्रिम जिन चैत्यालय हैं। यथा सुदर्शन मेरु के चार वनों में ३४ विजयार्थ पर्वतों पर (१०२) १६ अकृत्रिम जिनमंदिर ३४

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