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सर्व दिशाओं को निर्मल करती हैं। इनके अभ्यन्तर कूटों की
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| पूर्वादिक चार दिशाओं में निवास करने वाली चार देवकुमारियाँ तीर्थंकर के जन्म समय में जातकर्म करने में कुशल रहती हैं। । १५०. प्रश्न अति के किसने भेरी उत्तर : एकेन्द्रियों के २४ भेद होते हैं । द्वीन्द्रिय के २, त्रीन्द्रिय के २, चतरिन्द्रिय के २ एवं पञ्चेन्द्रिय के चार इस प्रकार सब मिलाकर तिर्यञ्चों के ३४ भेद हैं। एकेन्द्रियों में पृथ्वीकायिक, जलकायिक, तेजकायिक और वायुकायिक के चार-चार (बादर पर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म पर्याप्त, सूक्ष्म अपर्याप्त) यानि कुल १६ भेद होते हैं। इनमें वनस्पति कायिक के ८ भेद मिलाने से कुल २४ होते हैं । वनस्पतिकायिक के भेद इस प्रकार हैं- वनस्पतिकायिक साधारण बादर पर्याप्त, साधारण बादर अपर्याप्त, साधारण सूक्ष्म पर्याप्त, साधारण सूक्ष्म अपर्याप्त, प्रत्येक प्रतिष्ठित पर्याप्त, प्रत्येक प्रतिष्ठित अपर्याप्त, प्रत्येक अप्रतिष्ठित पर्याप्त और प्रत्येक अप्रतिष्ठित अपर्याप्त ।
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१५१. प्रश्न तिर्यञ्चों की उत्कृष्ट आयु कितनी होती है ? उत्तर : शुद्ध पृथ्वीकायिक जीवों की उत्कृष्ट आयु १२,००० वर्ष, खर पृथ्वीकायिक जीवों की २२,००० वर्ष, जलकायिक जीवों की ७,००० वर्ष, तेजस्कायिक जीवों की ३ दिन, वायुकायिक जीवों की
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