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उत्तर : ग्यारहवें कुण्डलवर द्वीप के बहुमध्य भाग में कुण्डलगिरि है, जिसके शिखर पर पूर्वादि दिशाओं में चार-चार कूटों सहित एक-एक सिद्धकूट है। तेरहवें रुचकवर द्वीप के बहुमध्य भाग में स्वर्णमय रुचकवर पर्वत है। रुचकगिरि के ऊपर पूर्वादे चार दिशाओं में पृथक्-पृथक् आठ-आठ कूट हैं, जिसके अभ्यन्तर की
ओर चार दिशाओं में चार कूट हैं। उन चार कूटों की अभ्यन्तर चार दिशाओं में पुनः चार कूट हैं और सर्व अभ्यन्तर चार दिशाओं में चार जिनेन्द्र कूट हैं। इन सबको मिलाने से रुचकगिरि पर कुल ४४ कूट हैं। इस प्रकार कुण्डलगिरि पर ४ एवं रुचकगिरि पर ४ अकृत्रिम पैमालय हैं। १४६. प्रश्न : रुचकपर्वत स्थित कूटों में कौन-कौन देवियाँ कहाँ
पर निवास करती हैं तथा उसकी विशेषता क्या है ? उत्तर : रुचक पर्वत के ऊपर पूर्व दिशा के आठ कूटों में आठ देवकुमारियाँ निवास करती हैं। ये भृगार धारण कर जिन-माता की सेवा करती हैं। दक्षिण आदि दिशाओं के आठ-आठ कूटों में निवास करने वाली आठ-आठ देवकुमारियाँ हाथ में दर्पण लेकर, . तीन छत्र धारण कर एवं चैवर धारण कर क्रमशः जिन-माता की सेवा करती हैं। अभ्यन्तर कूटों की पूर्वादिक चार दिशाओं में निवास करने वाली चार देवकुमारियाँ तीर्थकर के जन्म-काल में
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