Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 96
________________ अंजनगिरि है। यह पर्वत १००० योजन गहरा, ८४,००० योजन ऊँचा और ८४,००० योजन प्रमाण विस्तारयुक्त समवृत्त अञ्जनगिरि की चारों दिशाओं में एक-एक लाख योजन विस्तार वाली चार-चार वापिकाएँ हैं। वापियों के बहुमध्य भाग में दही के सदृश वर्णवाला १००० योजन गहरा, १०,००० योजन ऊँचा और १०,००० योजन प्रमाण विस्तार बाला गोल एक-एक दधिमुख पर्वत है । वापियों के दोनों बाहूय कोनों पर दो-दो रतिकर पर्वत हैं, जो २५० योजन गहरे, १००० योजन ऊँचे और १००० योजन विस्तार वाले गोल हैं। इस तरह चार अंजनगिरि, सोलह दधिमुख और बत्तीस रतिकर मिलकर ५२ पर्वत हैं। प्रत्येक पर्वत पर १०० योजन लम्बे, ५० योजन चौड़े एवं ७५ योजन ऊँचे एक-एक अकृत्रिम चैत्यालय हैं जिनमें अष्ट प्रतिहार्य युक्त १०८ - १०८ प्रतिमाएँ हैं । आष्टानिक पर्व के समय प्रत्येक दिशा के १३-१३ चैत्यालयों में चारों निकाय के इन्द्र अपने परिवार के साथ अनवरत् ६४ प्रहर तक दो-दो प्रहर के क्रम से महापूजा करते हैं।' १४८. प्रश्न : नन्दीश्वर द्वीप के आगे अन्य किन-किन द्वीपों में अकृतित्रम चैत्यालय हैं ? १. त्रिलोकसार गाथा, ६६६-६७८ (८७)

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