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उत्तर : लौकान्तिक देव आपस में समान अर्थात ऋद्धि आदि की हीनाधिकता से रहित, विषयों से विरक्त, अनुप्रेक्षाओं में दत्तचित्त, चौदह, पूर्वधारी और निःम कल्याण को साप तीनों को प्रतिबोध देने में तत्पर तथा एक भवावतारी होते हैं। १३३. प्रश्न : देवों में एक भवावतारी कौन-कौन हैं ? उत्तर : सौधर्म इन्द्र, उसी की शची नाम की देवागंना, उसी के सोमादि चार लोकपाल, सानत्कुमारादि दक्षिणेन्द्र, सर्व लौकान्तिक देव और सर्वार्थसिद्धि में उत्पन्न होने वाले सर्व देव अपने-अपने स्थान से च्युत हो मनुष्य 'मव प्राप्त कर नियम से उसी पर्याय में निर्वाण प्राप्त करते हैं। १३४. प्रश्न : वैमानिक देवों में सम्यग्दर्शन का क्या नियम है ? । उत्तर : वैमानिक देवों में पर्याप्तक और अपर्याप्तक अवस्था में
औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन हो सकते हैं। अपर्याप्त अवस्था में औपशमिक सम्यग्दर्शन द्वितीयोपशम सम्यक्त्व के साथ मरने वाले जीवों की अपेक्षा घटित होता है। देवांगनाओं के अपर्याप्त अवस्था में एक भी सम्यग्दर्शन नहीं होता है। पर्याप्त अवस्था में नवीन उत्पत्ति की अपेक्षा औपमिक और क्षायोपशमिक ये दो सम्यग्दर्शन हो सकते हैं। मिथ्यादृष्टि जीव का उत्पाद नवम ग्रैवेयक तक हो सकता है। अनुदिश और अनुत्तर विमानों में सम्यग्दृष्टि ही उत्पन्न होते हैं।
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