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संयम की विराधना और बाँधी हुयी आयु की अपवर्तना कर असंयत सम्यग्दृष्टि हो गया। पीछे मरकर यदि सहस्रार कल्प में उत्पन्न हुआ तो वहाँ की साधारण आयु जो अट्ठारह सागर की है, उससे घातायुष्क सम्यग्दृष्टि देव की आयु अन्तर्मुहूर्त कम आहे ॥ सागर अधिक होगी। यदि वही पुरुष संयम की विराधना के साथ हो सम्यक्त्व की विराधना कर मिथ्यादृष्टि हो जाता है और पीछे मरण कर उसी सहस्रार कल्प में उत्तपन्न होता है, तो उसकी आयु वहाँ की निधि अगर सार की आयु से पल्प के . असंख्याता भाग से अधिक होगी। ऐसे जीव को धातायुष्क मिथ्यादृष्टि कहते हैं। १३१. प्रश्न : लौकान्तिक देवों के कितने और कौन-कौन से
भेद हैं ? वे कहाँ निवास करते हैं ? उत्तर : लौकांन्तिक देवों के ८ भेद हैं
१. सारस्वत, २. आदित्य, ३. वहिन, ४. अरुण, ५. गर्दतोय, ६. तुषित, ७. अव्याबाध और ८. अरिष्ट।
ब्रह्मलोक के अन्त में ऐशानादि आठ दिशाओं में गोलाकार प्रकीर्णक विमानों में क्रमशः आठ लौकान्तिक देव निवास करते हैं। १३२. प्रश्न : लौकान्तिक देवों की क्या विशेषता है ?
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