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होती है। सबकी आयु ३३ सागर ही होती है। देवागंनाओं की जघन्य आयु कुछ अधिक एक पल्य एवं उत्कृष्ट आयु ५५ पल्य होती है। १२६. प्रश्न : घातायुष्क किसे कहते हैं ? उत्तर : जो अधिक स्थिति बाँधकर पीछे संक्लेश परिणामों के कारण अधस्तन स्वर्गों में उत्पन्न होते हैं, उन्हें घातायुष्क कहते हैं। ऐसे देवों की उत्पत्ति शतार-सहस्रार स्वर्ग तक ही होती है, आगे के स्वर्गों में इनकी उत्पत्ति नहीं होती है। अतः कुछ अधिक का सम्बन्ध शतार-सहस्रार स्वर तक ही होती है। १३०. प्रश्न : भवनत्रिक देवों में घातायुष्क की क्या व्यवस्था है ? उत्तर : किसी मनुष्य ने अपनी संयम अवस्था में देवायुबन्ध किया। पीछे उसने संक्लेश परिणामों के निमित्त से संयम की विराधना कर दी और इसलिए अपवर्तन घात के द्वारा आयु का घात. भी कर दिया। संयम की विराधना कर देने पर भी यदि वह सम्यग्दृष्टि है, तो मर कर जिस कल्प में उत्पन्न होगा, वहाँ की साधारणतः निश्चित आयु से अन्तर्मुहूर्त कम अर्थ सागरोपम प्रमाण अधिक आयु का धारक होगा।
कल्पना कीजिए किसी मनुष्य ने संयम अवस्था में अच्युत कल्प में संभव बाईस सागर प्रमाण आयु का बन्ध किया। पीछे
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