Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 84
________________ उत्तर : आगे-आगे के स्वर्गों में स्थिति-आयु, प्रभाव अर्थात् शाप और अनुग्रह रूप शक्ति, सुख अर्थात् साता वेदनीय कर्म के उदय से इष्ट विषयों का अनुभव, धुति अर्थात् शरीर, वस्त्र, आभूषण आदि की क्रांति, लेश्याविशुद्धि, इन्द्रियविषय और अबधिज्ञान का विषय ये प्रत्येक अधिक-अधिक होते हैं। गति, शरीर, परिग्रह और अभिमान ऊपर-ऊपर के देवों में हीन-हीन होते हैं। १२६. प्रश्न : स्वर्गों में देवों के शरीर की अवगाहना कितनी होती है ? उत्तर : सौधर्म-ऐशान' स्वर्ग में देवों की अवगाहना ७ हाथ, सानत्कुमार-माहेन्द्र स्वर्ग में ६ हाथ, ब्रह्मादि चार स्वर्ग में ५ हाथ, शुक्रादि चार स्वर्ग में ४ हाथ, आनत-प्राणत स्वर्ग में ३, हाथ, आरण-अच्युत स्वर्ग में ३ हाथ, अधो अवेयक में २३ हाथ, मध्यम अवेयक में २ हाथ, उपरिम ग्रैधेयक और नौ अनुदिशों में ११ हाथ और अनुत्तर विमान के देवों की अवगाहना १ हाथ प्रमाण होती है। १२७. प्रश्न : वैमानिक देवों में आहार और श्वासोच्छ्वास का क्या नियम है ? उत्तर : वैमानिक देवों में जितने सागर की आयु हो उतने हजार (७५)

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