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जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक पूजन करते हैं तथ विथ्यादृष्टि देव अन्य देवों के द्वारा हो जाने के उपरान्त “ये कुलदेवता हैं" ऐसा मानकर जिन-पूजन करते हैं। ये सभी देव सुख - सागर में निमग्न होने के कारण अपने व्यतीत हुए काल को नहीं जानते ।
कल्पवासीदेव तीर्थंकरों की महापूजा और उनके पंचकल्याणक महोत्सयों में जाते हैं, किन्तु अहमिन्द्र देव तो अपने ही स्थान पर स्थित रहकर मणिमय मुकुटों पर अपने हाथ रखकर नमस्कार करते हैं। गर्भ और जन्मादि कल्याणकों में देवों के उत्तर शरीर जाते हैं। उनके मूल शरीर तो सुख पूर्वक जन्मस्थानों में स्थित रहते हैं ।
१२० प्रश्न : इन्द्रों के भवनों के सामने क्या होता है ?
उत्तर : समस्त इन्द्र-प्रासादों के आगे न्यग्रोध वृक्ष होते हैं। इनमें एक-एक वृक्ष पृथ्वी स्वरूप और जम्बू वृक्ष के सदृश होता है
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इसके मूल में प्रत्येक दिशा में एक-एक जिनेन्द्र प्रतिमा होती है, जिसके चरणों में इन्द्र आदिक प्रणाम करते हैं तथा जो स्मरण मात्र से ही पाप को हरने वाली है।
१२१. प्रश्न: देवों के शरीर में क्या विशेषता होती है ?
उत्तर : देवों के शरीर में न नख, केश और रोम होते हैं, न
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