Book Title: Karananuyoga Part 3 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 80
________________ अपने-अपने स्थान पर ले जाते हैं। सौधर्म कल्प में ६,००,००० विमान और ऐशान कल्प में ४,००,००० विमान शुद्ध हैं अर्थात् इनमें मात्र देवागंनाओं की ही उत्पत्ति होती है। इन्हीं कल्पों में क्रम से २६,००,००० और २४,००,००० विमानों में देव और देवागंना दोनों की उत्पत्ति होती है। देवियाँ मूल शरीर के साथ ही नियोगी देवों के साथ जाती हैं। ११६. प्रश्न : देवों की उत्पत्ति का स्वरूप क्या है ? उत्पन्न होने के अनन्तर क्या विशेष कार्य होता है ? देव सत्कार्य रूप कौनसी क्रियायें करते हैं उत्तर : जिस प्रकार पूर्वांचल पर सूर्य का उदय होता है, उसी प्रकार देव सुखरूप शय्या पर जन्म लेकर अन्तर्मुहूर्त में छह पर्याप्तियों को पूर्णकर, सुगन्धित सुखरूप स्पर्श से युक्त एवं पवित्र शरीर को धारण कर लेते हैं। नवीन देव के उत्पाद को जानकर अन्य देव आनन्द रूप बाजों के, 'जय जय' के एवं अनेक स्तुतियों के शब्द करते हैं, उन शब्दों को सुनकर प्राप्त हुए वैभव और अपने परिवार को देखकर तथा अवधिज्ञान से अपने पूर्वजन्म को ज्ञात कर वे नवीन देव धर्म की प्रशंसा करते हैं तथा सरोवर में स्नान करने के बाद पट्ट रूप अभिषेक एवं अलंकारों को प्राप्त कर सम्यग्दृष्टि देव स्वयं (प)Page Navigation
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