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१०६. प्रश्न: अनुसार विमान कौन-कौन है। इनकी विजय आदि संज्ञा क्यों है और ये कैसे अवस्थित हैं ?
उत्तर : ये अनुत्तर विमान निम्न हैं:- १. विजय, २. वैजयन्त, ३. जयन्त, ४. अपराजित और ५. सर्वार्थसिद्धि ।
विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमान वाले देव दो-तीन भव से अधिक संसार में परिभ्रमण नहीं करते हैं, अतः संसार पर विजय प्राप्त कर लेने से इनका यह विजयादि नाम सार्थक है ।
सर्व अर्थों की सिद्धि हो जाने से इसमें रहने वाले देव एक भवावतारी होते हैं, इसलिए इसका नाम सर्वार्थसिद्धि है ।
सर्वार्थसिद्धि नामक पटल में विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित ये चार श्रेणीबद्ध विमान क्रमशः पूर्वादि दिशाओं में एक-एक हैं। इनके मध्य में सर्वार्थसिद्धि नामक इन्द्रक विमान है । १५०. प्रश्न: अष्टम पृथ्वी कहाँ है और इसका विस्तार आदि क्या है ?
उत्तर : सर्वार्थसिद्धि इन्द्रक विमान के ध्वजादण्ड से बारह योजन ऊपर जाकर क्रमशः बीस-बीस हजार मोटे धनादधि, धन और तनु वातवलय हैं, इसके बाद अर्थात् तीन लोक के मस्तक पर आरूढ़
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