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६. शुक्र, १०. शुक, ११. शार, १२ तहबार, १३, भारत, १४. प्राणत, १५. आरण और १६. अच्युत। ____ 'सुधर्मा' नामक सभा के साहचर्य से सौधर्म स्वर्ग एवं शेष इन्द्रों के नाम के साहचर्य से स्वर्गों के उपर्युक्त नाम हैं।
ऊर्ध्वलोक मेरुतल से सिद्धलोक पर्यन्त है, जिसका प्रमाण ७ राजू है। इसमें से मूरु प्रमाण अर्थात् १,००,०४० योजन का मध्यलोक है। मेरु की चूलिका से उत्तम भोगभूमिज मनुष्य के एक बाल की मोटाई प्रमाण ऊपर से स्वर्ग का प्रारम्भ है। मेरुतल से डेढ़ राजू में सौधर्म-ऐशान, इसके ऊपर डेढ़ राजू में सानत्कुमार-माहेन्द्र, इसके ऊपर-ऊपर अर्ध-अर्थ राजू के प्रमाण में क्रम से अन्य छह युगल अवस्थित हैं। इस प्रकार छह राजू में सोलह स्वर्ग स्थित हैं। सोलह स्वर्गों के ऊपर एक राजू में नव ग्रैवेयक, नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमानों का अवस्थान है। स्वर्गों की संख्या सोलह है। सोलह स्वर्गों में आदि के चार स्वर्गों एवं अन्त के चार स्वर्गों में से प्रत्येक में एक-एक इन्द्र है तथा मध्य के आट स्वर्गों में दो-दो पर्ग अर्थात् एक युगल के बीच एक इन्द्र है, अतः इन्द्रों की अपेक्षा बारह कल्प माने जाते हैं। १०७. प्रश्न : नव ग्रैवेयक कौन-कौन हैं ? इनकी ग्रैवेयक संज्ञा
क्यों है ?
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