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७६. प्रश्न : खोटे मनुष्यों को चाहने के कारण किन्नर,
कुत्सित पुरुषों की कामना करने के कारण किम्पुरुष, मांस खाने से पिशाच इत्यादि कारणों से ये संज्ञायें क्यों
नहीं मानते ? उत्तर : व्यन्तरों में किम्पुरुष आदि की क्रिया-निमित्तक संज्ञा मानना उचित नहीं है, यह सब तो देवों का अवर्णवाद है।
ये देव पवित्र वैक्रियिक शरीरधारी होते हैं। ये कभी अशुचि औदारिक शरीर वाले मनुष्य आदि की कामना नहीं करते हैं और न मांस-मदिरादि के खान-पान में ही प्रवृत्त होते हैं। लोक में जो व्यन्तरों की मांसादि-ग्रहण की प्रवृत्ति सुनी जाती है, वह केवल उनकी क्रीड़ा मात्र है। उनके तो मानसिक आहार होता है।
देवगति नामकर्म के उत्तरोत्तर प्रकृति भेद के उदय से किन्नरादि विशेष संज्ञायें होती हैं। ८०. प्रश्न : भवनत्रिक देवों में कौन-सी लेश्या होती है ? उत्तर : भवनत्रिक देव एवं देवियों में कृष्ण, नील, कापोत और जघन्य से पीत लेश्या होती है। सब देवों में द्रव्य और भाव लेश्या समान होती है।
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