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८१. प्रश्न : भवनत्रिक देवों में कौन-कौन से सम्यग्दर्शन होते
उत्तर : भवनांत्रक देवों में अपयाप्त अवस्था में कोई भी सम्यग्दर्शन नहीं होता है। पर्याप्त अवस्था में औपशमिक और क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन नया प्राप्त किया जा सकता है। सम्यग्दर्शन सहित भवनत्रिक देवों में उत्पत्ति नहीं होती है। ५२. प्रश्न : भवनत्रिक देयों में कौन-कौन से गुण-स्थान होते
उत्तर : भवनत्रिक देवों में अपर्याप्त अवस्था में एक मिथ्यात्व'
कहा भी है- भवणवासिय-दाणवेंतर-जोइसियदेवा देवीओ सोधम्मीसाण-. कप्पवासियदेवीओ च मिच्छाइदित सासण-सम्माइदिठ-ट्ठाणे सिया पज्जत्ता सिया अपज्जता. सिया पज्जत्तियाओ, सिया अपज्जत्तियाओ।
(धवल- / ३३७ सूत्र ६६) अर्थ- मवनवासी. वाण व्यन्तर, ज्योतिषी देव और उनकी देवियाँ तथा सौधर्म और ऐशान कल्पवासिनी देवियाँ ये सब मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में पर्याप्त भी होते हैं तथा अपर्याप्त भी होते हैं । (षट् .. खण्डागम मूल ६६ तथा धवल /३३७, धवल ६/४४२, धवल ६/४६६-६७ आदि) अतः भवन्त्रिक देवों में अपर्याप्त दशा में मिथ्यात्व तथा सासादन ये दो गुणस्थान होते हैं. ऐसा जानना चाहिए। (ति. प. ३/८५) गो.जी./जी.प्र. तथा कन्नड टीका गा, ७२६. पृष्ठ ६८४. भाग-२ ज्ञानपीठ प्रकाशन, धवल २/५४६-४७ आदि)
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