Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 60
________________ अगम्य क्षेत्र का सूची-व्यास १०,००० + २२४२ = १२,२४२ योजन होता है। अगम्य क्षेत्र का घनफल = . (१२,२४२) x १० ४ १२.३४३}x११० योजन -- १३०३२६२५०१५ घन योजन है। यह अगम्य क्षेत्र का प्रमाण है। ५८. प्रश्न : ज्योतिषी देवों के गमन में क्या विशेषता है ? उत्तर : जम्बूटीन, लवणस, बातमोरम, बालोददि समुद्र और अर्ध पुष्करवर द्वीप के अर्थात् अढ़ाई द्वीप और दो समुद्र सम्बंधी ज्योतिष्क देव मेरु पर्वत से ११२१ योजन छोड़कर मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा करते हुए निरन्तर चलते रहते हैं। इससे बाहयक्षेत्र के ज्योतिष्क देव अवस्थित हैं। गति में रत ज्योतिष्क देवों के द्वारा काल का विभाग होता है । चन्द्र, सूर्य और ग्रह इन तीन को छोड़कर शेष नक्षत्र व तारागण सदा एक ही मार्ग में गमन करते हैं। (५१)

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