________________
गन्धर्व, यक्ष, भूत और पिशाच इन सात प्रकार के व्यन्तरदेवों के आवास हैं।
रत्नप्रभ पृथ्वी के पंकबहुल भाग में जम्बूद्वीप से तिरछे दक्षिण एवं उत्तर दिशा में साल त दीप-सा के बाद हम दक्षिणेन्द्र, उत्तरेन्द्र एवं उनके परिवार वाले राक्षस नामक व्यन्तरों के आवास
चित्रा और वा पृथ्वी की सन्धि से प्रारम्भ कर मेरु पर्वत की ऊँचाई तक तथा मध्यलोक का विस्तार जहाँ तक है वहाँ तक के समस्त क्षेत्र में व्यन्तरदेव यथायोग्य भवनपुरों, आवासों एवं भवनों में रहते हैं। ७१. प्रश्न : व्यन्तर देयों के चैत्यवृक्ष कौन से हैं ? उनका
स्वरूप क्या है ? उत्तर : व्यन्तर देवों के क्रमशः अशोक, चम्पा, नागकेसर, तुम्बरु, वट, कण्टकतरु, तुलसी और कदम्ब नाम के चैत्यवृक्ष होते हैं।
चैत्यवृक्षों के मूल की प्रत्येक दिशा में पल्यंकासन से युक्त चार-चार जिन प्रतिमाएँ हैं। प्रत्येक प्रतिमा के आगे एक-एक मानस्तम्भ है जो नाना प्रकार की भौतियों की मालाओं एवं दिव्य घण्टाजाल आदि से सुशोभित है।
(४३)