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श्रेणिबद्ध बिल असंख्यात योजन विस्तार वाले ही होते हैं। प्रकीर्णकों में कुछ प्रकीर्णक बिल संख्यात योजन विस्तार वाले और कुछ असंख्यात योजन विस्तार वाले होते हैं। ये बिल गोल, चौकोर और त्रिकोन आकार वाले हैं। २१. प्रश्न : नरक बिलों में शीत आदि की बाधा किस प्रकार
उत्तर : प्रथम नरक पृथ्वी से लेकर पाँचवीं नरक पृथ्वी के तीन चौथाई भाग पर्यन्त अति उष्ण वेदना और पाँचवीं नरक पृथ्वी के शेष एक चौथाई भाग में तथा छठी और सातवीं नरक पृथ्वी में अतिशय शीत वेदना है। अर्थात् कुल (३०,००,००० + २५,००,००० रु १५,००,००० + १०,००,००० + २२,५०,०००) ८२,२५,००० बिलों पर्यन्त अत्यन्त उष्ण वेदना है (७५,००० + ६६६६५ + ५) १,७५,००० बिलों में अत्यन्त शीत वेदना है।। २२. प्रश्न : प्रत्येक पृथ्वी के नारकियों में लेश्या की व्यवस्था
किस प्रकार है ? उत्तर : प्रथम और द्वितीय पृथ्वी के नारकियों में कापोत लेश्या, तृतीय पृथ्वी के उपरितन बिलों के नारकियों में कापोत लेश्या
और नीचे के बिलों के नारकियों में नील लेश्या, चतुर्थ पृथ्वी के नारकियों में नील लेश्या, पञ्चम पृथ्वी के उपरितन बिलों के
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