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उत्तर : भवनों की लम्बाई, चौड़ाई का जघन्य प्रमाण संख्यात योजन और उत्कृष्ट प्रमाण असंख्यात योजन है। वे समस्त भवन चौकोर होते हैं। उनका बाहल्य (ऊँचाई) तीन सौ योजन है। प्रत्येक भवन के बीच में सौ योजन ऊँचा एक पर्वत है और प्रत्येक पर्वत पर एक-एक चैत्यालय है। भवनों की भूमि और दीवारें रत्नमयी होती हैं। वे भवन सतत् प्रकाशमान रहते हैं और सर्वेन्द्रियों को सुख देने वाली चन्दनादि वस्तुओं से सिक्त होते हैं। ५४. प्रश्न : नरक-बिल भी इसी प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी में
चित्रादि पृध्वियों के नीचे अब्बहुल भाग में बने हुए हैं, फिर उन्हें भवन संज्ञा न देकर बिल संज्ञा क्यों दी गई
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उत्तर : जिस प्रकार यहाँ सर्पादि पापी जीवों के स्थानों को बिल कहते हैं और पुण्यवान मनुष्यों के रहने के स्थानों को भूमिगृह आदि कहते हैं, उसी प्रकार निकृष्ट पाप के फल को भोगने वाले नारकी जीवों के रहने के स्थानों की संज्ञा बिल है और पुण्यवान देवों के रहने के स्थानों की संज्ञा भवन है। ५५. प्रश्न : भवनलोक में अकृत्रिम चैत्यालयों की संख्या
कितनी हैं ? उत्तर : भवनलोक में सात करोड़ बहत्तर लाख अकृत्रिम चैत्यालय