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हैं, जिनमें देव-देवांगनाएँ भक्तिपूर्वक नृत्य, संगीत एवं गान आदि द्वारा जिन-पूजन करते हैं। भवनों की जितनी संख्या है, अकृत्रिम चैत्यालयों की उतनी ही संख्या है। ५६. प्रश्न : भवनवासी देवों में आहार और श्वासोच्छ्वास का
क्या कम है ? उत्तर : असुरकुमार देव १००० वर्ष में आहार ग्रहण करते हैं और एक पक्ष में श्वासोच्छ्वास लेते हैं। भागकुमार, सुपर्णकुमार और द्वीपकुमार १२३ दिन में आहार ग्रहण करते हैं तथा १२१ मुहूर्त में श्वासोच्छ्वास लेते हैं। उदधिकुमार, स्तनितकुमार और विद्युत्कुमार १२ दिन में आहार ग्रहण करते हैं एवं १२ मुहूर्त में श्वासोच्छ्वास लेते हैं तथा दिक्कुमार, अग्निकुमार और वायुकुमार देव ७३ दिन में आहार ग्रहण करते हैं और ७६ मुहूर्त में श्वासोच्छ्वास लेते हैं। ये देव अति-स्निग्ध और अनुपम अमृतमय आहार को मन से ग्रहण करते हैं। ५७. प्रश्न : भयनवासी देवों का गमन कहाँ-कहाँ पर होता
उत्तर : भक्ति से युक्त सभी इन्द्रादिदेव पंच-कल्याणकों के निमित्त ढाई द्वीप में तथा जिनेन्द्र प्रतिमाओं की पूजन के लिमित्त नन्दीश्वर द्वीप में जाते हैं। शीलादिक गुणों से संयुक्त किन्हीं