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उत्तर : भवनत्रिक देव काय-प्रवीचार से युक्त होते हैं तथा वेद नोकषाय की उदीरणा होने पर वे मनुष्यों के समान कामसुख का अनुभव करते हैं।
सप्त धातुओं से रहित होने के कारण निश्चय से उन देवों के वीर्य का क्षरण नहीं होता। केवल वेद-नोकषाय की उदीरणा के शान्त होने पर उन्हें संकल्पसुख उत्पन्न होता है। ६३. प्रश्न : भवनवासी देव किनकी पूजा करते हैं ? उत्तर : सम्यग्दर्शन रूपी रत्न से युक्त देव तो कर्मक्षय के निमित्त नित्य ही अत्यधिक भक्ति से जिनेन्द्र-प्रतिमाओं की पूजा करते हैं, किन्तु सम्यग्दृष्टि देवों से सम्बोधित किये गये मिथ्यादृष्टि देव भी कुल-देवता मानकर जिनेन्द्र-प्रतिमाओं की नित्य ही नाना प्रकार से पूजा करते हैं। ६४. प्रश्न : भवनवासी देवों में उत्पत्ति के क्या कारण हैं ? उत्तर : ज्ञान चारित्र में दृढ़ शंका वाले, संक्लेश परिणामों वाले, दोषपूर्ण चारित्र वाले, उन्मार्गगामी, निदान भावों से युक्त, पापों की प्रमुखता से सहित, कामिनी के विरहरूपी ज्वर से जर्जरित, कलह -प्रिय और पापिष्ठ कितने ही अविनयी जीव एवं मिथ्यात्व भाव से संयुक्त कितने ही संज्ञी और असंज्ञी जीव भवनवासियों में उत्पन्न होते हैं । जो क्रोध, मान, माया और लोभ में आसक्त हैं, दुश्चारित्र