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पर्यन्त क्षेत्र को विषय करता है। अधःदिशा में अपने-अपने भवनों के नीचे-नीचे थोड़े-थोड़े क्षेत्र में प्रवृत्ति करता है एवं तिरछे रूप से बहुत अधिक क्षेत्र में अबाधित प्रवृत्ति करता है।
क्षेत्र की अपेक्षा भवनवासी देवों के अवधिज्ञान का प्रमाण जघन्य रूप से पच्चीस योजन है। काल को अपेक्षा एक दिन के भीतर की वस्तु को विषय करता है। उत्कृष्ट रूप से क्षेत्र एवं काल की अपेक्षा असुरकुमार देवों के अवधिज्ञान का प्रमाण क्रमशः असंख्यात करोड़ योजन एवं असंख्यात वर्ष मात्र है। शेष देवों के अवधिज्ञान का प्रमाण, क्षेत्र एवं काल की अपेक्षा क्रमशः उत्कृष्ट रूप से असंख्यात हजार योजन और असुकुमारों के अवधिज्ञान के काल से संख्यात-गुणा कम है। ६१. प्रश्न : भवनवासी देवों का उत्सेध कितना होता है एवं
विक्रिया कितनी होती है ? उत्तर : असुरकुमार देवों के शरीर की ऊँचाई २५ धनुष और शेष देवों की ऊँचाई १० धनुष मात्र होती है। दस प्रकार के भवनवासी देव अनेक रूपों की विक्रिया करते हुये अपने-अपने अवधिज्ञान के क्षेत्र को पूरित करते हैं। विक्रिया द्वारा निर्मित उनके शरीरों की ऊँचाई अनेक प्रकार की होती है। ६२. प्रश्न : भवनत्रिक में कामसेवन किस प्रकार होता है ?