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मुनिवरादिक की पूजन एवं परीक्षा के निमित्त, अपनी-अपनी क्रीड़ा करने के लिए अथवा शत्रु-समूह को नष्ट करने की इच्छा से असुरकुमारादिक देवों की गति ऊर्ध्वरूप से (अन्य की सहायता के बिना) ऐशान स्वर्ग पर्यन्त और दूसरे देवों की सहायता से अच्युत स्वर्ग पर्यन्त होती है। नीचे तीसरी पृथ्वी तक जा सकते हैं। ५८. प्रश्न : भवनवासी देवों की उत्कृष्ट एवं जघन्य आयु
कितनी होती है ? उत्तर : भवनवासी देवों के दक्षिणेन्द्रों में (१) चमर (२) भूतानन्द (३) वेणु (४) पूर्ण एवं (५) जलप्रभादि छह देवों की उत्कृष्ट आयु क्रमशः १ सागर, ३ पल्य, २३ पल्य, २ पल्य एवं १३ पल्य होती
उत्तरेन्द्रों में (१) वैरोचन (२) धरणानन्द (३) वेणुधारी (४) वशिष्ठ एवं (५) जलकान्त आदि छह देवों की उत्कृष्ट आयु क्रमशः साधिक १ सागर, साधिक ३ पल्य, साधिक २३ पल्य, साधिक २ पल्य एवं साधिक १३ वो पल्य होती है। भवनवासी देवी की जघन्य आयु १०,000 वर्ष की होती है! ५६. प्रश्न : आयु की अपेक्षा भवनघासी देवों का सामर्थ्य
कितना होता है ? उत्तर : जो देव दस हजार वर्ष की आयु वाला है, वह अपनी