Book Title: Karananuyoga Part 3 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 32
________________ प्रथम नरक गया । यहाँ से निकलकर उसने संज्ञी पर्याय प्राप्त की । पुनः मरकर असंज्ञी हुआ तथा मरकर पुनः प्रथम नरक गया । यह एक बार हुआ। पुनः वहाँ से निकल, संज्ञी होकर मरा और असंज्ञी पर्याय प्राप्त कर मरण किया तथा पुनः नरक चला गया, यह दूसरी बार हुआ। इस प्रकार अधिक से अधिक आठ बार उत्पन्न हो सकता है। नरक से निकला हुआ जीव असंज्ञी नहीं होता इसलिये उसे बीच में संज्ञी पर्याय प्राप्त करनी पड़ी। इसी कारण यहाँ बीच में एक पर्याय का अन्तर होते हुए भी निरन्तर कहा है। सरीसृप, पक्षी, सर्प, सिंह और स्त्री के लिए ऐसा नियम नहीं है, वे बीच में अन्य किसी पर्याय का अन्तर डाले बिना ही उत्पन्न हो सकते हैं । मत्स्य सप्तम नरक से जाकर वहाँ निकल कर पहले गर्भज होगा, फिर मत्स्य हो मरण कर सप्तम नरक जायेगा, क्योंकि नरक से निकला जीव सम्मूर्छन नहीं होता। इसी प्रकार मनुष्य मरकर सप्तम नरक गया, मरकर गर्भज तिर्यञ्च हुआ, फिर मनुष्य हो. मरकर गर्भज तिर्यञ्च हुआ, पुनः मनुष्य मरकर फिर सप्तम नरक जायेगा, क्योंकि सप्तम नरक का जीव मनुष्य नहीं होता, इसी कारण इन दोनों जीवों के बीच में एक पर्याय का अन्तर होते हुये भी निरन्तर कहा है । ३६. प्रश्न : प्रथमादि पृथ्वियों में सम्यग्दर्शन- प्राप्ति के क्या साधन हैं ? (२३)Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147