Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 39
________________ ४५. प्रश्न : भवनत्रिक देवों के अवान्तर भेद कितने हैं ? उत्तर : भवनवासी देवों के उक्त दस प्रकार के भेदों में प्रत्येक के १. इन्द्र, २. सामानिक, ३. त्रायस्त्रिश, ४. पारिषद्, ५ आत्मरक्ष, ६. लोकपाल, ७. अनीक, ८. प्रकीर्णक, ६. आभियोग्य और १०. किल्विषिक के भेद से दस-दस भेद हैं। ___व्यन्तर और ज्योतिष्क देवों के क्रमशः आठ प्रकार के और पाँच प्रकार के भेदों में प्रत्येक के बायस्त्रिश एवं लोकपाल को छोड़कर शेष आठ प्रकार के भेद हैं। ४६. ध : देवों के अमाय का अभाव है, अतः उनमें आत्मरक्ष आदि की कल्पना क्यों है ? उत्तर : यद्यपि इन्द्र आदि देवों को किसी प्रकार का भय नहीं है, फिर भी उनकी विभूति का द्योतन करने के लिए तथा प्रीति की प्रकर्षता का कारण होने से दूसरों पर प्रभाव डालने के लिए आत्मरक्ष होते हैं अर्थात् इस सब परिकर को देखकर इन्द्र आदि को परम् प्रीति होती है। ४७. प्रश्न : भवनवासियों के कितने और कौन-कौन इन्द्र उत्तर : भवनवासियों के दस प्रकार के भेदों में से प्रत्येक में दो-दो (३०)

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