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उत्तर : सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का अन्तरंग साधन अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोम. मिथ्यात्व, सम्यगमिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति इन सात प्रकृतियों का उपशम, क्षय और क्षयोपशम है। नरक गति में उपर्युक्त सात प्रकृतियों का क्षय करने की योग्यता नहीं है।
बहिरंग साधन की अपेक्षा तृतीय पृथ्वी तक किन्हीं नारकियों को जाति स्मरण, किन्हीं को धर्म-श्रवण और किन्हीं को तीव्र वेदना के अनुभव से, चतुर्थ पृथ्वी से सप्तभं पृथ्वी तक किन्हीं को जाति-स्मरण एवं किन्हीं को तीव्र वेदना के अनुभव से सम्यग्दर्शन होता है।
पूर्वभव के परिचित देव तृतीय पृथ्वी तक जाकर नारकियों को धर्मोपदेश देते हैं, अतः वहाँ तक धर्म-श्रवण सम्भव है। उसके आगे देवों का गमन नहीं है एवं क्षेत्र का वातावरण अनुकूल नं होने से तथा परोपकार की भावना नहीं होने से वहाँ के सम्यग्दृष्टि नारकी अन्य नारकियों को संबोधित नहीं करते हैं, इसलिए वहाँ पर धर्म-श्रवण संभव नहीं है। ३७. प्रश्न : प्रधमादि पृथ्वियों में कहाँ कौनसा सम्यग्दर्शन है ? उत्तर : प्रथम पृथ्वी में नारकियों की पर्याप्त अवस्था में तीनों सम्यग्दर्शन (उपशम, क्षायिक, क्षयोपशम) पाये जाते हैं एवं अपर्याप्त
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