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(सम्बर्गमध्यादृष्टि, असंयत्त संप्वापृष्टि, देससंद भी नहीं होते। सातवीं पृथ्वी से निकला हुआ जीव सासादन सम्यग्दृष्टि भी नहीं हो सकता, मात्र मिथ्यादृष्टि ही होता है। नरक से निकला हुआ नारकी जीव एकेन्द्रिय, विकलत्रय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, भोगभूमि, लब्ध्यपर्याप्तक और सम्मूर्छन जीवों में उत्पन्न नहीं होता है। ३३. प्रश्न : तीर्थकर प्रकृति वाला जीव नरक में कहाँ सक
किस अवस्था में जा सकता है ? नरकों में उनकी विशेष
व्यवस्था क्या होती है ? उत्तर : जिस मनुष्य ने पहले नरकायु का बंध कर लिया है, पीछे सम्यग्दर्शन प्राप्त कर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया है ऐसा जीव तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता वाला हुआ। वह जीव तीसरे नरक तक जा सकता है। प्रथम नरक में जाने वाला तीर्थकरसत्वी सम्यक्त्व सहित नरक में जाता है। दूसरे एवं तीसरे नरक में जाने वाला तीर्थकरसत्वी जीव मरण समय से पूर्व मिथ्यादृष्टि होकर ही जा सकता है। नरक में जाकर अन्तमुहूर्त में सम्यग्दृष्टि बनकर पुनः तीर्थकर प्रकृति का बंध करने लगता है।
तीर्थकर प्रकृति की सत्ता वाले नारकियों की आयु छह माह शेष रहने पर देव उनके उपसर्ग दूर कर देते हैं अर्थात् छह माह पूर्व उसके ऊपर कोट का आवरण हो जाता है, जिससे अन्य नारकी उसे दुःख नहीं दे सकते हैं।
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