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उत्तर : नरक-पटलों में बिलों का विन्यास इन्द्रक, श्रेणिबद्ध और प्रकीर्णक रूप में है ।
जो अपने पटल के सर्व बिलों के ठीक मध्य में होता है, उसे इन्द्रक बिल कहते हैं । इस इन्द्रक बिल की चारों दिशाओं एवं विदिशाओं में जो बिल पंक्ति रूप से स्थित हैं. उन्हें श्रेणिबद्ध बिल कहते हैं। जो श्रेणिबद्ध बिलों के बीच में बिखरे हुए पुष्पों के समान यत्र-तत्र स्थित हैं, उन्हें प्रकीर्णक बिल कहते हैं ।
यह रचना प्रत्येक पटल में रहती है। प्रथम पृथ्वी के ( नरक के) तेरह पटलों में १३ इन्द्रक बिल हैं। दूसरे आदि नरकों में पटलों की संख्यानुसार क्रमशः ११, ६, ७, ५, ३, १ इन्द्रक बिल हैं। कुल इन्द्रक बिल ४६ हैं ।
प्रथम नरक के प्रथम पटल में स्थित इन्द्रक बिल की एक-एक दिशा में ४६ - ४६ और विदिशाओं में ४८-४८ श्रेणिबद्ध बिल हैं। द्वितीयादि इन्द्रक बिल से लेकर सप्तम नरक स्थित अन्तिम इन्द्रक बिल तक श्रेणिबद्ध बिलों की संख्या एक-एक कम होते-होते अन्तिम इन्द्रक बिल की चारों दिशाओं में तो एक-एक श्रेणिबद्ध बिल मिलता है परन्तु विदिशाओं में श्रेणिबद्ध बिल नहीं पाये जाते हैं ।
२०. प्रश्न: बिलों का विस्तार और आकार क्या है ?
उत्तर : इन्द्रक बिल संख्यात योजन विस्तार वाले ही होते हैं । (१३)