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खर भाग में एक-एक हजार योजन मोटी १. चित्रा, २. वज्रा, ३. वैडूर्या, ४: लोहिता, ५. मसार-कल्पा, ६. गोमेदा, ७. प्रबाला, ८. ज्योतिरसा, ६. अंजना, १०. अंजनमूलिका, ११ अंका, १२. स्फटिका, १३. चन्दना, १४. सर्वार्थका, १५. बकुला, १६. शैला, ये सोलह पृथ्वियाँ हैं । इस सोलह पृथ्वियों के बीच में किसी प्रकार का अन्तराल नहीं है। इन १६ पृथ्वियों की लम्बाई एवं चौड़ाई लोक के अन्त तक फैली हुई होने से लोकप्रमाण है। पंक भाग एवं अपबहुल भाग की भी लम्बाई एवं चौड़ाई लोकप्रमाण
है।
१५. प्रश्न : द्वितीयादि पृथिवयों हा बामन्य (मोगराई) दया है ? उत्तर : द्वितीय शर्करा पृथ्वी की मोटाई ३२,००० योजन, बालुकाप्रभा की २८,००० योजन, पंकप्रभा की २४,००० योजन, धूमप्रभा की २०,००० योजन, तमःप्रभा की १६,००० योजन और महातम प्रभा की ८,००० योजन मोटाई है। १६. प्रश्न : सातों पृथ्वियों का आधार क्या है ? उत्तर : रत्नप्रभा आदि सातों पृथ्विायों के नीचे बीस-बीस हजार योजन मोटे तीन बातवलय हैं और उनके नीचे आकाश है। एक पृथ्वी दूसरी पृथ्वी से संश्लिष्ट नहीं है। पृथ्वी की मोटाई से कम एक-एक राजू के अन्तराल से पृथ्वियाँ स्थित हैं।