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बाहर स्थावर जीव में उत्पन्न होने के लिए मरण से पूर्व भारान्तिक समुद्घात करता है। मरण के पूर्व उस जीव के अस नाम कर्म का उदय होने से त्रस नाम कर्म सहित वह त्रस जीव सनाली के बाहर पाया जाता है।
लोपूरण समुद्घात में जब केवली भगवान के आत्मप्रदेश समस्त लोक में फैलते हैं, उस समय भी त्रसनाली के बाहर त्रसजीव (केवल भगवान के त्रस नाम कर्म का उदय होने से) पाये जाते हैं। १३. प्रश्न : अधोलोक में स्थित रत्नप्रभा आदि पृथ्वियों के
रूढ़ नाम क्या हैं ? उत्तर : रत्नप्रभा आदि पृथ्वियों के रूढ़ नाम क्रम से धर्मा, वंशा, मेघा, अंजना, अरिष्ठा, मधवा और माधवी हैं। १४. प्रश्न : रत्नप्रभा पृथ्वी के कितने भाग है और उनका
कितना बाहल्य (मोटाई) है एवं लम्बाई, चौड़ाई कितनी
उत्तर : रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन भाग हैं- खर भाग, पंक भाग और अपबहुल भाग। इन तीनों का बाहुल्य क्रमशः सोलह हजार, चौरासी हजार और अस्सी हजार योजन है। प्रथम पृथ्वी की मोटाई १,८०,००० योजन है।
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