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नारकियों में नील लेश्या और नीचे के बिलों के नारकियों में कृष्ण लेश्या, षष्ट पृथ्वी के नारकियों में कृष्ण और सप्तम पृथ्वी के नारकियों में परम कृष्ण लेश्या होती है। नारकियों में द्रव्य लेश्या तो आयु-प्रमाण एक सरीखी रहती है परन्तु भाव लेश्या एक रहते हुए भी उसमें अन्तमुहूत में परिवर्तन होता है अर्थात् कापोत आदि में मन्द-मन्दतर-मन्दतम आदि अनेक अवान्तर भेद होते हैं।' २३. प्रश्न : नारकियों में विक्रिया की क्या व्यवस्था है ? उत्तर : नरकों का सम्पूर्ण वातावरण दुःखमय होता है। हजार बिच्छुओं के एक साथ काटने पर जो वेदना होती है उससे भी अधिक वेदना वहाँ की भूमि के स्पर्श मात्र से होती है। भूख-प्यास का भयंकर दुःख होता है। नारकी जीव नरक बिल में उत्पन्न होते ही भय से काँपता हुआ छत्तीस आयुधों के मध्य में गिरकर वहाँ से उछलता है। पुराने नारकी नये नारकी को देखकर धमकाते हुए उसकी ओर दौड़ते हैं। परस्पर एक दूसरे को असह्य पीड़ा देते हैं। चिल्लाते हुए कितने ही नारकी जीव हजारों यंत्रों में तिलों की तरह पेल दिये जाते हैं। कितने ही नारकी जीवों को सांकल, आरी, करोत, भाला आदि से अन्य नारकी पीड़ा देते हैं। वे गरम तेल में फेंके जाते हैं, जलती हुई ज्वालाओं में पकाये जाते हैं। वृक्ष
रा. वा. अध्याय- ३. पृष्ठ ४४४. नया संस्करण ।