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* जिनसहस्रनाम टीका - ७* राति मनसा सह वशीकरोति इति अक्षरः = अक्ष यानी इन्द्रियाँ उन्हें जिन्होंने मन के साथ वश कर लिया वे भी अक्षर हैं।
श्रुतसागर आचार्य ने एक जगह अक्षर शब्द के अनेक अर्थों का निरुक्तिपूर्ण विवेचन किया है। वह भी यहाँ उल्लेख करने योग्य है।
मोक्ष को अक्षर कहते हैं और मोक्ष प्रभु का स्वरूप है अत: वे 'अक्षर'
'अहँ' इस अक्षर रूप जिनेश्वर हैं अत: वे अक्षर हैं। अ बीजाक्षर ब्रह्मरूप है, क्ष क्षरण अर्थात् नाशक पापों का नाशक या संसार का नाशक धर्म है अर्थात् क्ष धर्मरूप है और र अग्निवाचक होने से आप तप रूपी अग्नि से युक्त थे अत: तपरूप होने से अक्षर हैं। अक्ष ज्ञान - केवलज्ञान ज्योति को राति = भक्तों को देते हैं अतः अक्षर रूप हैं।
आत्मा को भी अक्ष कहते हैं, उसको राति स्वीकरोति अर्थात् अपने शुद्ध आत्मस्वरूप को जिन्होंने स्वीकारा अतः अक्षर हैं।
अक्षर शब्द का अर्थ 'व्यवहार' है, प्रभु ने तो स्वयं निश्चय नय का आश्रय लिया किन्तु व्यवहार को, दान-पूजादिकों की रीति को -राति प्रवर्तयति-लोक में प्रवर्तीया अतः अक्षर हैं।
विश्ववित् = 'विश् प्रवेशने विशति लोकेऽस्मिन् इति विश्वं ।
'अशिलटिनटिविशिभ्यः कः' विश्वं जगत् वेत्तीति विश्ववित् । = विश्व या जगत् जिसे प्रभु केवलज्ञान से जानते हैं अत: वे विश्ववित् हैं।
विश्वविद्येशः = विश्वा चासौ विद्या च विश्व विद्या सकलविमलकेवलज्ञानं तस्याः ईश: स्वामी स विश्वविद्येशः = पूर्ण निर्मल केवलज्ञान को विश्वविद्या कहते हैं, जिनेश्वर उसके स्वामी हैं।
विश्वा विद्या विद्यन्ते येषां ते विश्वविद्याः श्रुतकेवलिगणधर केवललिनस्तेषां ईश: विश्वविद्येशः = सम्पूर्ण श्रुतज्ञान जिनको प्राप्त हुआ है ऐसे श्रुतकेवली तथा गणधर विश्वविद् हैं और उनके ईश जिनेश्वर हैं अत: आप विश्वविद्येश हैं।