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प्यास ही प्रार्थना है
हो; परवाना मिट भी गया हो और फिर भी उस मिटे से उठती हो | समय में भी तुम्हारे जैसे बहुत अभागे थे, जो महावीर को न देख धूप, उठती हो गंध, उठती हो सुवास; कोई जो 'न' हो गया हो पाए। महावीर उनके गांव से गुजरे और उन्होंने न देखा। उन्होंने
और फिर भी जिसमें होने की परम वर्षा हो रही हो! कोई ऐसा महावीर में कुछ और देखा। किसी ने देखा : 'यह आदमी नंगा व्यक्ति खोजो!
खड़ा है, अनैतिक है। अश्लीलता है यह तो। परम साध हो चुके सदगुरु न मिले तो शास्त्र। जब तक सदगुरु मिले, तब तक हैं; मगर नग्न खड़ा होना, यह तो समाज के विपरीत व्यवहार सदगुरु। शास्त्र तो मजबूरी है। वह तो दुर्भाग्य है। वह तो अंधेरे | है।' खदेड़ा महावीर को गांव के बाहर, पत्थर मारे। जिसके में टटोलना है। शास्त्र पढ़-पढ़कर घबड़ाहट होगी। और | चरणों में मिट जाना था, उसका विरोध किया। और यह मत घबड़ाहट को आश्वासन शास्त्र से न मिलेगा; लाख शास्त्र कहे, | सोचना कि वे नासमझ लोग थे—वे तुम्ही हो। वे तुम जैसे ही मगर किताब का क्या भरोसा! जीवंत कोई चाहिए!
लोग थे। इसमें कुछ फिर फर्क नहीं है, जरा भी फर्क नहीं है। इसलिए जगत में जब भी धर्म की लपट आती है, वह किसी | और जब उन्होंने ऐसे तर्क खोजे थे तो उनका भी कारण था, कि जीवंत व्यक्ति के कारण आती है। महावीर जब हुए, लाखों लोग यह आदमी वेद-विरोधी है और वेद तो परम ज्ञान है! अब संन्यस्त हुए! एक आग लग गई सारे जंगल में! वृक्ष-वृक्षों पर | शास्ता सदा ही शास्त्र-विरोधी होगा। उसका कारण है, विरोधी आग के फूल खिले! जिनने कभी सपने में भी न सोचा होगा, वे होने का; क्योंकि जब जीवंत घटना घट रही हो धर्म की तो तुम भी संन्यस्त हुए।
बासी बातें मत उठाओ। बासी बातों से क्या लेना-देना? जब तुमने कभी जंगल देखा है, पलाश-वन देखा है? जब पलाश ताजा भोजन तैयार हो तो ताजा भोजन बासी भोजन के विपरीत के फूल खिलते हैं तो पूरा जंगल गैरिक हो उठता है, लपटों से भर होगा ही, क्योंकि तुम बासे को फेंक दोगे। तुम कहोगे, जब ताजा जाता है! ऐसा जब महावीर चले इस जमीन पर थोड़े दिन, वे मिल रहा है तो बासे को कौन खाए! बासे को तो तभी तक खाते दिन परम सौभाग्य के थे। वैसे चरण इस पृथ्वी पर बहुत कम हो जब ताजा नहीं मिलता; मजबूरी में खाते हो। पड़ते हैं। तो जिनको भी उनकी गंध लग गई, जिनको भी जब शास्ता पैदा होता है तो शास्त्रों को लोग हटा देते हैं। वे थोड़ी-सी उनकी हवा लग गई, उन्हीं को पर लग गए! वही कहते हैं, 'रखो भी, फिर पीछे देख लेंगे! यह घड़ी पता नहीं कब परवाने हो गए! फिर उन्होंने फिक्र न की। इस आदमी को विदा हो जाए! अभी तो जो सामने मौजूद हुआ है, अभी तो जो देखकर भरोसा आ गया। उन्होंने कहा कि ठीक है, तो हम भी प्रगट हुआ है, अवतरित हुआ है, अभी तो जो लपट जीवंत खड़ी छलांग लेते हैं! एक श्रद्धा जन्मी। श्रद्धा शास्त्र से कभी पैदा नहीं | है-इसके साथ थोड़ा रास रचा लें, थोड़ा खेल खेल लें; इसके होती; शास्त्र से ज्यादा से ज्यादा विश्वास पैदा होता है। श्रद्धा के साथ तो थोड़े पास हो लें। यह तो थोड़ा सत्संग का अवसर मिला लिए कोई जीवंत चाहिए, कोई प्रमाण चाहिए, कोई प्रत्यक्ष है, शास्त्र तो फिर देख लेंगे। कोई जल्दी नहीं है, जन्म पड़े हैं। चाहिए जिसमें वेद खड़े हों! कोई शास्ता चाहिए, जिसमें जीवन पड़े हैं।' शास्त्र जीवंत हों! फिर जब महावीर खो जाते हैं तो लोग शास्त्रों तो जब भी कोई शास्ता पैदा होता है, पुराने शास्त्रों को में उनकी वाणी इकट्ठी कर लेते हैं, फिर पूजा चलती है, पाठ | माननेवाले लोग उसके विपरीत हो जाते हैं, क्योंकि उस आदमी चलता है, पंडित इकट्ठे होते हैं, सब मुर्दा हो जाता है, फिर सब के कारण शास्त्रों को लोग हटाने लगते हैं। शास्त्रों को हटाते हैं मरघट है। महावीर जीवित थे तब जिन-धर्म जीवित था; फिर तो तो पंडितों को हटाते हैं, तो सारा व्यवसाय हटाते हैं। कठिन हो सब मरघट है।
जाता है। पंडित दुश्मन हो जाते हैं। फिर जब यह शास्ता मर और ध्यान रखना, हताश मत होना; ऐसा कभी भी नहीं होता | जाता है, वही पंडित जो इसके दुश्मन थे, मरघट पर इकट्ठे हो कि पृथ्वी पर कोई चरण न हों जिनकी वजह से पृथ्वी धन्यभागी न | जाते हैं-श्रद्धांजलि चढ़ाने को। फिर वे ही शास्त्र बना लेते हैं। हो। ऐसा कभी नहीं होता। इसलिए यह मत सोचना कि क्या उनकी दुश्मनी जीवंत से थी, शास्त्र से थोड़े ही थी। फिर वे ही करें, अभागे हैं हम, महावीर के समय में न हुए! महावीर के शास्त्र बना लेते हैं।
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