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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Vol. I, L.D. Series No. 28, Ahmedabad 1970 A.D.,
P-334.
२५-२६. bid, Pp-207-208. २७. मुनि कल्याणविजय गणि, श्रमण भगवान महावीर, प्रथम आवृत्ति,
अहमदाबाद २००२ ईस्वी, पृष्ठ ३७२. २८-३०. मुनि कल्याणविजय, पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ-२१, पाद टिप्पणी ३१. वही, पृष्ठ-२२, पाद टिप्पणी क्रमांक-१ ३२-३३. Chatarjee, Ibid, Vol. I, P-38 ३४. Mehta & Chandra, Ibid, Vol. I, 780-81. ३५-३६. Chatarjee, lbid, P-39. ३७. bid, P-40.
मुनि कल्याणविजयजी, पूर्वोक्त, पृष्ठ-३७. ३८. मुनि कल्याणविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ-३७-३८. ३९. "उच्चै गर शाखा के उत्पत्तिस्थान एवं उमास्वाति के जन्मस्थल
की पहचान" श्रमण, वर्ष-४२, अंक-६-१२, पृष्ठ-१७-२४. बृहत्कल्पसूत्र १-५०. उद्धृत-जगदीशचन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज,
परिशिष्ट-१, पृष्ठ-५५८. ४१. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग-३, प्रस्तावना, पृष्ठ-१५-१६.
S. B. Deo, History of Jain Monachism, P-575-578.
J. P. Singh, Aspect of Early Jainism, P.-36-51. ४२. तत्त्वार्थसूत्र, विवेचक पं० सुखलाल संघवी, प्रस्तावना, पृष्ठ-४-५. ४३. नन्दीसूत्र, जिनदासगणि महत्तर कृत चूर्णि सहित, संपा० मुनि
पुण्यविजय, प्रस्तावना, पृष्ठ-५ और आगे. ४४. दशवैकालिकसूत्र, नियुक्ति एवं चूर्णि सहित, संपा० मुनि
पुण्यविजयजी, प्राकृत ग्रन्थ परिषद, ग्रन्थांक १७, अहमदाबाद १९७३ ईस्वी, प्रस्तावना, पृष्ठ १६-१७.
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