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जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास
में श्रेष्ठ थी अंत समय में अरिष्टनेमि से दीक्षा लेकर दुष्कर तपस्या की तथा अपना प्रयोजन सिद्ध कर लिया। उसके पुत्र का नाम सबकुमार था । ३४६
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२.२५.८० लक्ष्मणा :- लक्ष्मणा सिंहलद्वीप के श्लेक्षण राजा की पुत्री थी, श्रीकृष्ण ने राजा के सेनापति का मान मर्दन किया । इससे प्रसन्न होकर राजा ने पुत्री का विवाह श्री कृष्ण से किया था । ३५०
२.२५.८१ सुषमा :- सुषमा राजा राष्ट्रवर्धन की पुत्री थी, श्रीकृष्ण ने उसके उद्दण्ड भाई का वध करके सुषमा के साथ विवाह किया था। कालांतर में वह दीक्षित हुई । ३५१
२.२५.८२ गौरी :- गौरी सिंधु देश के मेरू भूपति की कन्या थी, उसने श्रीकृष्ण का वरण किया था, कालांतर में वह दीक्षित
हुई (३५२
२.२५.८३ पद्मावती :- बलराम के मामा हिरण्यनाभ की पुत्री थी उसने स्वयंवर में श्रीकृष्ण का वरण किया था। कालांतर में वह दीक्षित हुई |३५३
२.२५.८४ गांधारी :- गांधारी गांधार देश के राजा नागजीत की कन्या थी । श्रीकृष्ण की पत्नी थी । कालांतर में वह दीक्षित
हुई | ३५४
२.२५.८५ धारिणी :- धारिणी द्वारिका नगरी के राजा अंधकवृष्णि की पत्नी थी। उसके दस पुत्र थे गौतम, समुद्र, सागर, गंभीर, आदि । ३५५ उस धर्म संस्कारमयी माता का ही प्रभाव था कि उसने अपने पुत्रों को त्याग मार्ग पर आगे बढ़ाया।
२.२५.८६ धारिणी :- धारिणी द्वारिका नगरी के राजा वृष्णि की रानी थी, इनके अक्षोभ, सागर, समुद्र, अचल, धरण पूरण आद आठ पुत्र थे । ३५६ आठों को योग मार्ग पर बढ़ाने वाली माता वास्तव में एक आदर्श माता थी ।
२.२५.८७ धारिणी :- वह द्वारिका नगरी के राजा वसुदेव की रानी थी, उसके पुत्र थे जालि, मयालि, उवयालि, पुरूषसेन एवं वारिषेण कुमार । २५७ पुण्यमयी माता के सुसंस्कारों के प्रभाव से पुत्र त्याग मार्ग पर आरूढ़ हुए ।
२.२५.८६ दुःशल्या :- दुःशल्या धृतराष्ट्र एवं गांधारी की पुत्री थी। सौ भाइयों की इकलौती बहन एवं शक्तिसंपन्न सिंधुपति जयद्रथ की पत्नी थी ३५६
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२.२५.६० धारिणी :- धारिणी मथुरा के राजा उग्रसेन की महारानी थी। गर्भस्थ शिशु के प्रभाव उसे पति का मांस खाने का दोहद पैदा हुआ। मंत्रियों के परामर्श से प्रयत्नपूर्वक रानी का दोहद राजा ने पूर्ण किया । पुत्र के जन्म के साथ ही भारी अपशकुन हुए अतः धारिणी ने पुत्र मोह का त्याग किया तथा कांस्य पेटी में सुरक्षित ढंग से राजा रानी की नामांकित मुद्रिका पहनाकर यमुना जल में प्रवाहित किया । वह पेटी सुभद्र श्रेष्ठी के हाथ लगी। बालक कंस के नाम से प्रसिद्ध हुआ । ३६०
२.२५.६१ थावच्चा :- थावच्चा श्रीकृष्ण के राज्य की गाथापत्नि थी । वह प्रभावशाली समद्धिशाली तथा व्यापार आदि लेन देन के समस्त कार्यों में अति कुशल थी। उसके पुत्र थावच्चा पुत्र की दीक्षा की भव्यता के लिए उसने राजा श्रीकृष्ण से छत्र, चामर और मुकुट की याचना की थी तथा पुत्रवधुओं के उत्तरदायित्व को भी बखूबी निभाया था । ३६१०
२.२५.६२ सोमा :- सोमा द्वारिका नगरी के सोमिल ब्राह्मण एवं सोमश्री की पुत्री थी। वह रूप एवं लावण्य संपन्न तथा उत्तमोत्तम देह वाली थी । स्वयं श्रीकृष्ण ने उसे सुवर्ण गेंद से क्रीड़ा करते हुए देखा। उसकी अद्भुत सौन्दर्य सुषमा से आकर्षित हुए, और अपने छोटे भाई गजसुकुमाल के लिए उसे कन्याओं के अन्तः पुर में रखवाया । ३६२
२.२५.६३ सुभद्रा :- सुभद्रा हरिवंश के राजा यदु के प्रपौत्र पौत्र, नरपति के पुत्र शूर के पुत्र राजा अंधक वृष्णि की गुणवत शीलवती रानी थी। सुभद्रा के दस पुत्र समुद्रविजय, अक्षोभ, स्तिमित, सागर, हिमवान् अचल, धरण, पूरण, अभिचंद्र और वसुदेव थे तथा दो पुत्रियाँ थीं कुंती और माद्री । ३६३ इस महिमामयी माता ने अपनी संतानों को धर्म संस्कारों से सिंचित किया था ।
२. २५.६४ सोमश्री :- सोमश्री राजा सोमदेव की पुत्री थी । वसुदेव ने मदोन्मत्त हाथी से सोमश्री की रक्षा की अतः राजा ने पुत्री का विवाह वसुदेव से किया था । ३६४
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