Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 618
________________ सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ क्र० संवत् प्राविका नाम संदर्भ ग्रंथ पृ. । । वंश/गोत्र | प्रेरक/प्रतिष्ठापक । प्रतिमा निर्माण गच्छ / आचार्य आदि प्रा. ज्ञा. 177 प्रा. ज्ञा. तपा. श्री हीरविजयसूरि | भ. श्री श्रेयांसनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. तपा. श्री हीर विजयसूरि | भ. श्रीशांतिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. तपा. श्री हीर विजयसूरि भ. श्रीशांतिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 812 | 1630 | जेठी, सुराई 813 1630 | अच्छबादे, वाछी 814 1630 रूपाई 815 1630 | संपू | 178 डीसवाल ज्ञा | 178 प्रा. ज्ञा० तपा. श्री हीर विजयसूरि | भ. श्री पद्मप्रभनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 178 | 178 178 179 816 | 1630 श्रीरति, गुराई, श्रीनाकू 817 | 1634 वाली 818 1634 वइजलदे, हीरादे | 1643 | हरखाई, पुरी | 1643 | जीवादे | 1647 | सूहवदे रजाई 179 179 179 822 1649 नाथी | 181 1649 | मंगाई ऊकेष ज्ञा. अंचल. धर्ममूर्ति सूरि भ. श्री अजितनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. प्रा. ज्ञा. तपा. श्री हीरविजयसूरि भ. श्री संभवनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. प्रा. ज्ञा. | तपा. श्री हीरविजयसूरि | भ. श्री कुंथुनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं.. प्रा. ज्ञा. तपा. श्री विजयसेनसूरि | भ. श्री विमलनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. श्री श्री ज्ञा. तपा. श्री विजयसेनसूरि | भ. श्री धर्मनाथ जी पा.जै.धा.प्र.ले.सं. उकेषवंष बृहत्त खरतर. | भ. श्री आदिनाथ जी पा.जै.धा.प्र.ले.सं. गादहीयागोत्र | जिनसिंहसूरि प्रा. ज्ञा. तपा. श्री हीरविजय सूरि भ. श्रीशांतिनाथ जी पा.जै.धा.प्र.ले.सं. प्रा. ज्ञा. तपा. श्री हीर विजयसूरि | भ. श्री धर्मनाथ जी पा.जै.धा.प्र.ले.सं. प्रा. ज्ञा. तपा. श्री हीर विजय भ. श्री पा.जै.धा.प्र.ले.सं. मुनिसुव्रतस्वामी जी चोपड़ा गोत्र खरतर, श्री जिनचंद्रसूरि | भ. श्री चंद्रप्रभ जी पा.जै.धा.प्र.ले.सं. श्री श्री ज्ञा. पूर्णिमा. ललितप्रभसूरि भ. श्री विमलनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. श्री श्री. ज्ञा. श्री ललितप्रभसूरि भ. श्रीशीतलनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. श्री. श्री. ज्ञा भ. श्रीशांतिनाथ जी पा.जै.धा.प्र.ले.सं. भ. श्री अजितनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. भ. श्री विमलनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 180 824 1649 कुंयरि | 181 825 1652 | विमलादे | 181 8526 | 1654 | वहलादे | 181 827 | 181 828 1854 | वहलादे 1662 | रलू, वीरादे, लखमादे 1662 | लखमादे 182 829 182 830 | 1662 लखमादे 182 831 श्री. ज्ञा तपा. श्री विजयदेव भ. श्री कुंथुनाथ जी पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 183 1664 सेपू 1667 | भली, कुंती, हीरा, मांजा, 832 विजयकीर्ति पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 183 पोषा 1672 | घेतलदे, हर्षादे श्री. ज्ञा 184 833 834 प्रा. ज्ञा. 184 1672 पुराई 11673 | मर्धाइ, सहजणदे श्री. ज्ञा 184 तपा. विजय देवसूरि भ. श्री धर्मनाथ जी |पा.जै.धा.प्र.ले.सं. तपा. विजयदेवसूरि भ. श्री संभवनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. तपा. भट्टा विजयदेवसूरि | भ. श्री ऋषभदेव जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. श्री विजयदेवसूरि भ. श्री अनंतनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. तपा. श्री विजयदेवसूरि भ. श्री सुमितनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. तपा. श्री विजयदेवसूरि भ. श्रीषीतलनाथ जी पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 836 | 1677 | अजाई रहिया 185 837 11877 | कनका प्रा. ज्ञा. प्रा. ज्ञा. श्री. ज्ञा. | 185 | 186 838-11681 रंगाइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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