Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 616
________________ 594 सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ क्र० संवत् श्राविका नाम संदर्भ ग्रंथ पृ. प्रतिमा निर्माण आदि 763 1615| कमलादे, कउडी, मदे भ. श्री श्री शांतिनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 166 जी 163 764|1587 | हरखीइ, इंद्राणी 765 1588 हीरी आसी | 1588 | मनी, माणिकि, लीली वंश/गोत्र प्रेरक/प्रतिष्ठापक गच्छ / आचार्य ओ. गोत्र बृहत्त खरतर श्री जिनचंद्रसूरि | श्री श्रीमाल ज्ञा. | सिद्धांत जयसुंदरसूरि श्री श्रीमाल ज्ञा. | आगम. ज्ञानरत्नसूरि | श्री श्रीमाल ज्ञा. | पूर्णिमा. वटमद्रीय श्री लब्धिसुंदरसूरि उसवाल ज्ञा. श्रीआणंदविमलसूरि उपकेष प्रीमलदे | कोरंट श्री कक्कसूरि गोत्र | 163 766 164 भ. श्री सुविधिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. भ. श्री सुमतिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. | भ. श्री चतुर्विशतिपट्ट | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. श्री वासुपूज्य जी भ. श्री आदिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. भ. श्री संभवनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 767 1588 | हरखी 164 768 15907 जसमादे | 164 769 1591 | सोनाई, वीरादे प्रा. ज्ञा. अंचल श्री गुणनिधान भ. श्री पार्श्वनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 165 7701591 हीरू, पन्नी प्रा. ज्ञा. 165 771 श्रीमाल ज्ञा. 165 772 1597 | रामदेवी 1598 | जीवाई, जीवी, भीमी 1598| भरमादे | अंचल श्री गुणनिधानसूरि | भ. श्री आदिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. | आगम श्री हेमहंससूरि | भ. श्री सुविधिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. श्री सोमविमलसूरि भ. श्री सुमतिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. श्रीसूरि भ. श्रीशीतलनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. तपा. श्रीरत्नषेखरसूरि भ. श्री कुंथुनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 165 773 डसावाल ज्ञा. श्री श्री ज्ञा. ओसवंष कटारिया गोत्र 165 774 | 1509 | पुनाइ | 166 नागर. ज्ञा. 166 775 | 1506 | पूंजी, वाउ | 776 | 1500 | सोमलदे श्रीजिनरत्नसूरि वृद्ध थिरापर सर्वसूरि पा.जै.धा.प्र.ले.सं. पा.जै.धा.प्र.ले.सं. श्री ज्ञा. 166 भ. श्रीशीतलनाथ जी भ. श्री विमलनाथ भ. श्री मुख्यपंचतीर्थी जी भ. श्रीशांतिनाथ जी भ. श्री धर्मनाथ जी उकेषवष पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 166 m_1520 नामलदे, कर्माई 778 1616 | सुरीइ, अजाही खरतर. श्रीजिनचंद्रसूरि पूर्णिमा. पू. मानविरज श्री ज्ञा. पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 170 779 1616 भा. श्री श्री ज्ञा. भ. श्री प्रतिमा जी पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 170 780 1617/ रत्नादे, जवणादे कटारियागोत्र खरतर. श्री जिनचंद्र भ. श्री चंद्रप्रभ जी पा.जै.धा.प्र.ले.सं. | 171 781 1617 | हरखी श्री श्री ज्ञा. 171 782 1617 | सखी तपा. श्री विजयदान सूरि | भ. श्री आदिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. तपा. श्री विजयदान सूरि भ. श्रीशांतिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. तपा. श्री विजयदान सूरि | भ. श्री सुमतिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. दीसावाल ज्ञा. लघुओसवाल. 171 783 1617 | सषमाइ 171 ज्ञा. 784 1617 | काबाई, जइवंती | प्रा. ज्ञा. | 171 785 | 1617 | पूराई प्रा. ज्ञा. तपा. श्री विजयदान सूरि | भ. श्री पार्श्वनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. तपा. श्री विजयदान सूरि भ. श्री पा.जै.धा.प्र.ले.सं. | मुनिसुव्रतस्वामी जी 171 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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