Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
क्र०
संवत्
प्राविका नाम
वंश/गोत्र |
संदर्भ ग्रंथ
।
प्रेरक/प्रतिष्ठापक | प्रतिमा निर्माण | गच्छ / आचार्य
आदि
737
प्रा. ज्ञा.
738
प्रा. ज्ञा.
739
नीमा ज्ञा.
740
श्री प्रा. ज्ञा.
741
प्रा. ज्ञा.
742
श्री श्री ज्ञा.
| 197
1564 | हली, अहवदे 1521 | धनाई | 1523 | लाही, मंदोअरि 1529 | राजू, आसू, माकूणदे 1521 | | धनाई 1513 | राणी, लाषणदे 1638 | वसादे, अमरादे | 1525 | राजूपु वानूपु माणिकि 1560 | लीलू, जीवाई चंपाई 1583 | पीआदे, सरीयादे 1612 | धिनाई 1600 टहिकू, अमरादे, जीवाइ
743
ओसवंष ज्ञा.
744
दीसा ज्ञा.
745
श्री श्री ज्ञा. श्री श्री ज्ञा.
746
ओस ज्ञा.
747 748
श्री ज्ञा.
वृद्धतपा. लब्धिसागरसूरि | भ. श्री अजितनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 197 | तपा. श्रीलक्ष्मीसागरसूरि | भ. श्री संभवनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 197 | तपा. श्रीलक्ष्मीसागरसूरि भ. श्री नमिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 7 197 | बृहत्तपा श्रीविजयरत्नसूरि | भ. श्री वासुपूज्य जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 197 | तपा. श्री लक्ष्मीसागरसूरि | भ. श्री संभवनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 197
आगम देवरत्नसूरि भ. श्री श्रेयांसनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | तपा. हीरविजयसूरि भ. श्री मुनिसुव्रत जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2
- 198 | तपा. लक्ष्मीसागरसूरि भ. श्री कुंथुनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 धर्मनाथ भ. श्री सद्गुरू जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2
198 पूर्णिमा श्री सूरि | भ. श्री आदिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 198 तपा. श्रीविजयदानसूरि भ. श्रीशीतलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 199 पूर्णिमा श्री पुण्यप्रभसूरि
पा.जै.धा.प्र.ले.सं. चतुर्विशतिपट्टः जी नागेंद्र
| भ. श्री आदिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 167 सर्वसूरि
| भ. श्री आदिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 167 श्रीहर्षविनयसूरि | भ. श्री सुमतिनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 168 श्री सूरि
| भ. श्री वासुपूज्य जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. विजयदानसूरि भ. श्री मुनिसुव्रत पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 168
स्वामी पंचतीर्थ जी श्री सूरि
भ. श्री धर्मनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. श्री धर्मसागरसूरि भ. श्रीशांतिनाथ जी । पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 168 तपा. पं. विजयदारसूरि | भ. श्रीशीतलनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 168 तपा. श्री सोमविमलसूरि भ. श्रीशीतलनाथ जी । पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 169
749
1605पना
प्रा० ज्ञा०
श्री ज्ञा.
श्री ज्ञा.
750
1605 | वादू 751 1605 | सोभगिणि, रतनादे
11605 | बाईसोही, इंद्राणी 7531605 | अमरी, नामलदे, रमादे
752
प्रा. ज्ञा.
168
।
प्रा. ज्ञा.
754
श्री ज्ञा.
168
755
श्री ज्ञा.
756
| | 1808 | नाकू
1610 झटी, रंगी | 1610 | वीराइ, पाची, साधू 1610 | मरघी, अणूआदे 1612 मरधी, लाली, पूराई
लघु ज्ञा.
ऊकेष.
757 758
श्री ज्ञा.
आगम. श्री संयम रत्न
| 169
सूरि
भ. श्री अजितनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.सं. चतुर्विशतिपट्टः जी भ. श्री पार्श्वनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं.
| 169
7591613 भुजाई, टबकाई 760 1613 | कर्मू, लीलु
श्री ज्ञा.
पूर्णिमा. श्री सूरि
भ. श्री
पा.जै.धा.प्र.ले.सं.
166
श्रीशीतलनाथादिपंचर्ती जी
761
श्री ज्ञा.
भ. श्रीशीतलनाथ जी | पा.जै.धा.प्र.ले.सं.
। 166
1615 खीमाई 1615 खीमाई, जीवादे, मकाइ
श्रीसूरि श्री सूरि
762
प्रा. ज्ञा.
भ. श्री संभवनाथ जी
पा.जै.धा.प्र.ले.सं.
166
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