Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 658
________________ 636 आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान ७.१३ श्रीमती सुधारानी जन : आपका जन्म २० जून १६३२ को जबलपुर में हुआ था। आपके पिता बैरिस्टर स्व. श्री जमनाप्रसाद (कलरैया) जैन थे। आपका औद्योगिक तथा सामाजिक क्षेत्र में अग्रणी है। आप (म.प्र.) निवासी श्रीमान् डालचंद जैन (पूर्व सांसद) की धर्मपत्नी हैं। आपकी बहन मेजर डॉक्टर एवं सबसे बड़ी बहन प्राचार्या थी। विवाहोपरांत आप बड़ी बहू के रूप में ससुराल में आई। ससुराल में ६ देवर तथा ४ ननंदें थी, जिनको आपने अपने भाई-बहनों की तरह समझा । अपने सास-ससुर सहित इतने बड़े परिवार को एक धागे में पिरोना आपकी विलक्षण सूझ-बूझ तथा आत्मीयता का परिचायक था। आपकी संस्कारवान् छ: पुत्रियां हैं जो पारिवारिक परंपराओं का निर्वाह करके चलती हैं। आपने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई है। आप सागर (म.प्र.) लायन्स क्लब की डायरेक्टर एवं पूर्व अध्यक्षा तथा प्रसूति गह सागर की निरन्तर ५० वर्षों तक अध्यक्षा रही हैं। अखिल भारतीय महिला परिषद् एवं दिगंबर जैन महासमिति मध्यांचल की संरक्षिका तथा सागर महिला समिति क्लब की आप सदस्या हैं। साहित्यिक संस्थाओं एवं भारतीय लोक संस्कति के सरंक्षण एवं परिवर्धन में आपका सक्रिय योगदान रहा है। वक्षारोपण, प्रदूषण नियंत्रण को प्रभावी ढंग से लागू कराने में आपका अनुकरणीय योगदान रहा है। संपूर्ण परिवार के साथ सम्मेद शिखर की यात्रा कर आपने अपनी इच्छा की पूर्ति की। जैन अजैन सभी तीर्थों की आपने यात्रायें की साथ ही इंग्लैंड, सं. रा. अमेरिका, कनाडा, जर्मन, हाँगकाँग, सिंगापुर, कुवैत, काहिरा (इजिप्ट) दुबई आदिकी विदेश यात्रायें भी संपन्न की। देश-विदेश भ्रमण में घटित घटनाओं के संदर्भ, संस्मरण लेखन में आपका उल्लेखनीय योगदान रहा। अपने एवं जैनेतर समाज में एकता स्थापित करने तथा फिजूलखर्ची रोकने का विशेष प्रयत्न किया। सामूहिक आदर्श विवाह हेतु प्रेरणा तथा आर्थिक सहयोग भी आपने दिया। वर्तमान परिवेश में बिखरते परिवारों की अवधारणा को संबल देने में इनकी यह संस्था राष्ट्रीय स्तर पर कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। राष्ट्रीय परिदश्य में विभिन्न प्रांतों में संचालित सांस्कतिक, शैक्षणिक, आध्यात्मिक संस्थाओं के उन्नयन में आपने आर्थिक सहयोग दिया। दीन दुःखियों की पुत्रियों के विवाह हेतु, चिकित्सा सुविधा प्रदान कराने हेतु आपकी दान देने की प्रवत्ति सदैव बनी रही। एक राजऋर्षि की तरह जीवन यापन करने के बाद भी वे सदैव निरभिमानी, आत्मीय संबोधनों के साथ सहजता एवं वात्सल्य की एक सशक्त प्रतिमूर्ति हैं।" ७.१४ अरूणा जी :___अरूणा जी लुधियाना निवासी स्वर्गीय श्रीमती मोहनदेवी की पुत्रवधु हैं। भारत के सुप्रसिद्ध उद्योगपति श्रीमान् अभय ओसवाल की आप धर्मपत्नि हैं। आप एक दानवीर सुश्राविका हैं। आपने लुधियाना विजयेन्द्र नगर में भव्य स्थानक एवं जैन मंदिर का निर्माण कराया। ८०० घरों की कॉलोनी का निर्माण आपके सहयोग से हआ। दिल्ली जी.टी. रोड़ पर स्थित वल्लभ स्मारक के लिए आपने सौ करोड़ रूपये का दान दिया। अन्य कई मंदिरों के निर्माण में भी आपका महत्वपूर्ण सहयोग रहा है। ७.१५ श्रीमती हुलासी देवी भूतोड़िया :____ आपका जन्म १६६० में हुआ था। आपके पिता श्री तनसुखलाल जी वैद थे। आप श्री माणकचंद जी भूतोड़िया की धर्मपत्नी हैं। छोटी बहन के साथ-साथ आप पढ़ना सीख गई। मौसी मकवूदेवी द्वारा निमित्त मिला । आचार्य कालूगणी के सान्निध्य में हुलासी बाई एवं मिलापी बाई दोनों मौसीयों के साथ उपासना करती थी। साध्वी सानांजी उन्हें वैराग्य की प्रेरणा देती रहीं। सास की अनुमति से हुलासीबाई ने श्वेत खद्दर की साड़ी पहननी शुरू की। आलोचना हुई उसकी परवाह आपने नहीं की। आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन का प्रवर्तन किया । अणुव्रती बनने का आव्हान किया। श्रीमती हुलासीदेवी ने प्रथम सूची में अपना नाम दर्ज कर इतिहास में नाम कमाया है। ७.१६ सुगनीदेवी जी पुंगलिया : आपका जन्म बीकानेर में वि०सं० १६६० में हुआ था । आपके पिता पूरणचंद जी चोपड़ा थे। आप बालचंद पुंगलिया (गंगा शहर) निवासी की धर्मपत्नी थी। आप अणुव्रती श्राविका थी। सावन भादवा एकांतर तप करती थी। व्रत, पखवाड़ा प्रतिदिन ६.७ सामायिक करना आपकी विशेषता थी। ६ वर्ष की उम्र में हरी वनस्पति मात्र का त्याग आपने कर दिया था। अ०भा० तेरा० महिला मंडल की आप सक्रिय कार्यकर्ता थी। स्वाध्याय में आपकी रूचि थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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