Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 689
________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास 667 हजार पोलियों के रोगीयों की चिकित्सा की गई। कईयों को स्वावलंबी बनाकर व्यवसाय का प्रशिक्षण दिया गया। स्त्रियों की शिक्षा हेतु उन्होनें नाज़ी एज्यूकेशन सैंटर खोला। धार्मिक गतिविधियों में भी आप सक्रिय भाग लेती रही हैं। आप ५० वर्षों से आयंबिल खातों की संचालिका हैं। इन सभी कार्यों में आपके पति श्रीमान् प्रकाशचंदजी का पूरा सहयोग आपको उपलब्ध है। आप मदु स्वभावी, प्रियधर्मी, दढ़धर्मी सुश्राविका हैं। अपने पति को विभिन्न जैन संस्थानों में ग्यारह लाख रूपए दान देने के लिए आपने ही प्रेरित किया।१३० ७.१३८ श्रीमती प्रमिलाबाई साकला : आप पूना निवासी श्रीमान् नौपतलालजी सांकला की धर्मपत्नी हैं। समाज सेवा में आपका अमूल्य योगदान रहा है। आप हृदयरोग चिकित्सा हेतु किये जाने वाले ऑपरेशनों के लिए गरीबों की हर सम्भव मदद करती हैं उसका खर्च स्वयं वहन करती हैं। अंधे बच्चों के लिए पंद्रह वर्षों से आप मदद कर रही हैं। आपने चिंचवड़ के समीप अंध महिला निवास एवं प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की है। जिसमें सौ अंधी महिलाओं के रहने की पूर्ण सुविधा है। महापालिका में सीखनेवाले बच्चों के लिए पोशाक, पुस्तकें व खाने पीने की सुन्दर व्यवस्था आप की ओर से है। अपने पुत्रों को भी आपने सुसंस्कार दिए हैं। पूना के जय आनंद ग्रुप की तरफ से १६ अगस्त २००७ को आपको समाजभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। आपके सुपुत्र श्री राजेश जी और रवीन्द्र जी भी अपना धन परमार्थ में लगा रहे हैं। और अपका अनुसरण करके आपका नाम रोशन कर रहे हैं।१३१ ७.१३६ श्रीमती डॉ. शशी जैन : आप अमतसर निवासी श्रीमान जंगीलालजी जैन की धर्मपत्नी हैं। आपने निदेशक डॉ श्री कष्णकुमार अग्रवाल के मार्गदर्शन में उत्तरप्रदेश गढ़वाल विश्वविद्यालय से 'बहत्रयी में 'रसाभिव्यक्ति' इस विषय पर शोध कार्य संपन्न किया है। धार्मिक सामाजिक गतिविधियों में भी आप अग्रणी रही हैं। आप जैन महिला संघ अमतसर की बीस वर्षों से महामंत्री हैं। चार वर्षों से जैन धार्मिक पाठशाला में अध्यापन कार्य हेतु सेवाएँ समर्पित कर रही हैं। समाज में सांस्कतिक, धार्मिक एवं सभी कार्यों में आप सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं। सभी धार्मिक नियमों में जप-तप में आप सतत् जागरूक रहती हैं । १३२ ७.१४० श्रीमती विजय श्री जैन : आपका जन्म संगरूर में सन् १६४५ में हुआ था। आप रोशनलाल जी एवं श्रीमती दयावंती ओसवाल की सुपुत्री हैं। आपने अंग्रेजी में एम.ए. की है। आप रिटायर्ड प्रिंसीपल है। बी.ए. IInd year दरनर्बर कॉलेज से संपन्न कर रही थी तभी पाँव पर वक्ष के गिरने से आप पैरापलीजिया (Paraplegia) की शिकार बनी। आप क्रीड़ा के क्षेत्र में टेबल टेनिस में गोल्ड मेडलिस्ट एवं व्हील चेअर रेस में ब्रांज मेडलिस्ट है। स्कूल में आपने प्रशासन से बेस्ट टीचर अवार्ड प्राप्त किया है। आपके जीवन में समता सहिष्णुता एवं धार्मिकता का त्रिवेणी संगम है। धार्मिक स्वाध्याय में आप निरन्तर अग्रसर हैं। वर्तमान में आप अपना अधिकांश समय चंडीगढ़ में ही व्यतीत कर रही है।३३ ७.१४१ श्रीमती मधु जैन : आपकी उम्र ३८ वर्ष की है। आप भुज निवासी हैं। २६ जनवरी २००१ को भुज में आए भूकम्प के भयानक तांडव से बच जाने पर मधु जी ने अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा- मुझे भगवान् महावीर स्वामी और नवकार महामंत्र की शरण ने बचा लिया। मध जैन शांत रही, जब भकंप आया तो उन्हें पता नहीं था कि पति और बच्चे कहां हैं। उन्होंने उन्हें आवाज लगाई और दौड पडी। ३८ वर्षीया यह गहिणी तेज कदमों से लगभग बाहर निकल चुकी थीं कि उनकी साड़ी एक स्कूटर में फंस गई। इतने में कंक्रीट का विशाल टुकड़ा उनके पैर पर आ गिरा और वे गिर गई, फिर तो, जैसे ईंट-पत्थरों की बारिश ही शुरू हो गई। तब भी वे घबराई नहीं और उन्होनें नवकार मंत्र का जाप और भगवान महावीर का नाम जपना शुरू कर दिया। उन्होंने अपनी ऊर्जा (शक्ति) बचाए रखी। अचानक बचाव कर्मियों ने उनके सिर के ऊपर से मलवा हटाया और उन्हें उम्मीद की किरण नज़र आई। ७२ घण्टे के बाद उन्हें ऊपर से खींचकर निकाला गया तो एक पैर की हड्डी चटकी हुई थी। वे कहती हैं, "मुझे खुद महावीर भगवान ने बचाया है। अब मेरे जीवन का एक ही उददेश्य है दूसरों की सेवा करना'। धर्म के प्रति उनकी आस्था और भी दढ़ हो गई, जब उन्होनें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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