Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 724
________________ 702 उपसंहार उदयगिरि एवं खण्डगिरि की गुफाओं की भितियों पर श्राविकाओं के चित्र दष्टिगत होते है। ई.पू.की द्वितीय-ततीय शती में राजा संप्रति के पारिवारिक चित्र में उनकी माता कंचनमाला तथा पत्नी के चित्र हैं जो धर्मानुयायिनी सुश्राविकाएँ थी। इसके अतिरिक्त ई.पू.की चतुर्थ शती की श्राविका कोशा का चित्र है जो जैन चित्र कल्पद्रुम से प्राप्त है। इसी प्रकार १०वीं शती की दक्षिण भारत की श्राविका गुलिकायज्जि का चित्र भी दष्टव्य है। बारहवीं शताब्दी के काष्ठपट्टिकाओं पर चित्रित श्राविकाओं के एवं उपदेश श्रवण करती हुई श्राविकाओं के सुंदर चित्र है। पंद्रहवीं से बीसवीं शताब्दी तक के चित्र क्रमशः इसमें उपलब्ध होते हैं, तो नौवीं से ग्यारहवीं शती के देवगढ़ से प्राप्त विविध प्रकार की भाव-भंगिमाओं में भक्तिमग्न श्राविकाओं के सुंदर मनोहर चित्र भी है, मुगल शैली के दुर्लभ चित्र भी है। इस प्रकार यह दुर्लभ चित्रखण्ड विभाग श्राविकाओं के अवदानों के पदचिन्हों को इतिहास के परिप्रेक्ष्य में प्रकट कर रहे हैं। शोध प्रबंध के द्वितीय अध्याय में प्रागैतिहासिक काल की जैन श्राविकाओं के अवदान की चर्चा की गई है। इस अध्याय में प्रथम बाईस तीर्थंकरों की जन्मदात्री माताएँ, उनकी पत्नियाँ, व पुत्रियों का वर्णन साथ ही चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव कुलकरों आदि की पारिवारिक श्राविकाओं के योगदानों का भी विवरण प्राप्त होता है। इस अध्याय में तीर्थंकर के शासनकाल में हुई श्राविकाओं की संख्या तालिका द्वारा प्रस्तुत की गई है। इस युग में श्राविका वर्ग का अवदान तीर्थंकर की माता के रूप में सर्वाधिक गौरवपूर्ण कहा जा सकता है। प्रस्तुत अवसर्पिणी काल में मोक्ष में सर्वप्रथम जाने का कीर्तिमान स्थापित करने वाली आद्य तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की जन्मदात्री मरूदेवी ने विश्ववंदनीयता का वरण किया था। ऋषभदेव की पुत्री सुंदरी ने वर्तमान अवसर्पिणीकाल की प्रथम अणुव्रतधारिणी श्राविका बनकर सुदीर्घ तपोमार्ग का सूत्रपात किया। मल्लिकुंवरी ने गहस्थावस्था में ही पूर्वभव के छ: मित्रों को प्रतिबोध दिया तथा चोखा परिव्राजिका को सत्य धर्म का बोध दिया। महासती सीता ने सतीत्व की सुरक्षा हेतु भयंकर कष्टों का सामना किया। राजीमती ने रथनेमि को वासना के दुष्चक्र से मुक्त करके त्याग मार्ग का पथिक बनाया। मंदोदरी बारंबार रावण को नीति पथ अपनाने की आदर्श प्रेरणा देती रही। दमयंती, गांधारी, मदनरेखा, मैनासुंदरी आदि कुल मिलाकर ३२८ सुश्राविकाओं के प्रेरक जीवन चरित इस अध्याय में गुंफित हैं। यद्यपि इस काल में अभिलेखीय आधार उपलब्ध नहीं होते, तथापि साहित्यिक स्त्रोतों और अनुश्रुतियों द्वारा ही श्राविकाओं के विवरण उपलब्ध होते है। इस अध्याय का मूल आधार जैन कथा साहित्य रहा है। चाहे ऐतिहासिक दष्टि से इस पर प्रश्न चिन्ह लगाया जाए, किंत संघीय आस्था और विश्वास के लिए यह तथ्यात्मक आधार के रूप में स्वीकार किया गया है। ____ शोध प्रबंध का ततीय अध्याय ई.पू. आठवीं शताब्दी से ई.पू. की छठी शताब्दी पर्यंत है। इसमें भ० पार्श्वनाथ और भ० महावीर की संघ व्यवस्था में श्राविका वर्ग के महत्वपूर्ण अवदानों की चर्चा की गई है। इस काल में भी हमे साहित्यिक स्त्रोतों और अनुश्रुतियों पर ही आधारित रहना पड़ा क्योंकि अभिलेखीय आधार प्राप्त नहीं होते। किंतु इतना अवश्य है कि इन अनुश्रुतियों को पूर्णतः अवैज्ञानिक कहकर नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि इनमें उल्लेखित अनेक नाम ऐतिहासिक आधारों पर भी प्रामाणिक माने गए हैं। जैन परंपरा में प्रभावती और यशोदा दोनों की त्यागवृत्ति को समान रूप से स्वीकार किया है भले ही विवाह संबंधी दोनों परंपराओं में अंतर्विरोध है। इसी प्रकार अर्धमागधी आगम साहित्य में वर्णित जयंति का अदभूत साहस प्रशंसनीय है, जिसने भरी धर्म सभा में भगवान् महावीर से प्रश्नोत्तर किया और समस्त सभा को तात्विक ज्ञान से परिचित करवाया। भगवान् पार्श्वकाल की अनेक साध्वियों का उल्लेख है, जो चारित्रिक दष्टि से च्युत होकर भी समाज पर अपना प्रभाव रखती थी। श्वेतांबर परंपरा के कल्पसूत्र की टीकाओं में यहाँ तक वर्णन है कि महावीर को आरक्षकों ने पकड़ लिया तब इन्होंने ही महावीर को मुक्त करवाया था। दोनों तीर्थंकरों की माताओं के अवदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। महावीर के माँ की ममता और वात्सल्य की परिधि इतनी विशाल थी, जिसके प्रभाव से महावीर को भी उसने अपनी जीवित अवस्था तक गहस्थ जीवन में ही रोके रखा। चंदना चाहे कालांतर में महावीर की शिष्या बनी किंतु उसका दढ़ मनोबल और मूला द्वारा प्रदत्त घोर यातनाओं में भी सहनशील बने रहना अपने आप में उसकी आत्मिक ऊँचाई की प्रतीक है। सुभद्रा ने अपने सतीत्व के प्रभाव से चंपा के द्वार उद्घाटित कर दिए। सती चंदना स्वयं भगवान् महावीर द्वारा शील हेतु अनुशंसित हुई। इक्ष्वाकुवंशीय महाराजा चेटक की रानी सुभद्रा, चंद्रवंशीय महाराजा शतानीक की धर्मपत्नी मगावती, उदयन महाराजा की पत्नी प्रभावती, महाराज दधिवाहन की पत्नी धारिणी आदि महारानियों की प्रेरणा से राजागण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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