Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 723
________________ जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास २००० अष्टम अध्याय उपसंहार Jain Education International 701 जैन संस्कृति की मुख्य विशेषता उसकी चतुर्विध संघ व्यवस्था है। चतुर्विध संघ में श्रमण-श्रमणी श्रमणोपासक - श्रमणोपासिकाओं का समावेश है। श्रमणोपासिका संघ चतुर्विध संघ की नींव है। श्राविका संघ का इतिहास अतीतकाल से लेकर आज तक निरंतर प्रवाहमान है तथापि श्राविकाओं के इतिहास से संबंधित प्रामाणिक स्त्रोतों का अभाव, अपर्याप्त सीमित सामग्री, श्राविका संघ संबंधी क्रमिक विकास यात्रा की अनुपलब्धि के होते हुए उनके संपूर्ण योगदानों को संग्रहित करना दुःसाध्य कार्य है। जैन परंपरा में लाखों करोंड़ों की संख्या में श्राविकाएँ हुई हैं अधिकांश का नामों निशां ही मिट गया है, कुछ का उल्लेख मात्र रह गया है, फिर भी कतिपय श्राविकाओं के अमूल्य योगदान स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाने योग्य हैं जो वर्तमान में भी प्रकाशित हो रहे हैं। यत्र-तत्र बिखरी हुई श्राविकाओं के जीवन एवं कतित्व संबंधी सूचनाओं को एवं उनके सांस्कतिक, धार्मिक एवं सामाजिक अवदानों को आबद्ध करने का प्रयत्न प्रस्तुत शोध प्रबंध का विषय रहा है। తోడు 1 जैन वाङ्मय में आध्यात्मिक दृष्टि से नारी का उल्लेख हुआ है। आगम ग्रंथों में साधना की दृष्टि से नर और नारी दोनों को ही समान स्थान प्राप्त है। तीर्थंकर संघ में श्राविकाओं की संख्या श्रावकों की अपेक्षा सदैव दुगुनी ही रही है। श्राविका संघ के आचार, व्यवहार में तथा एक सामान्य गहस्थ नारी के आचार, व्यवहार में बड़ा अंतर होता है । श्राविका के बारह व्रत होते है, वह नित्य ही धर्माचरण करती है तथा दान, शील, तप, भाव की आराधना से जीवन को सुसज्जित करती है। श्राविका संबंधी आचार-व्यवहार का विवरण प्रथम अध्याय में समेटा गया है। नारी जाति का विभिन्न क्षेत्रों में अवदान एवं नारी जाति के इतिहास की आधारभूत सामग्री द्वारा श्राविकाओं के अवदान की चर्चा की गई है। इसमें साहित्यिक एवं अभिलेखीय स्त्रोतों का आधार ग्रहण करते हुए प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान युग तक की श्राविकाओं द्वारा जैन संघ को दिये गये योगदानों की चर्चा का एक प्रयत्न अवश्य किया है। कितनी ही हस्तलिखित प्रतियाँ ग्रंथ भंडारों की पेटियों में बंद पड़ी है, जब ये सूचियों के रूप में संपूर्ण विवरण सहित प्रकाशित होगी, तब न जाने सैंकड़ों अन्य श्राविकाओं के योगदान प्रकट हो सकेंगे जो हमारे अतीत के इतिहास की अमूल्य धरोहर बन सकेगी। शोध कार्य करते हुए मुझे एक आत्मिक आनंद की अनुभूति हुई कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में उसमें भी विशेष रूप से जैन धर्म के क्षेत्र में नारी जाति को न्याय दिलाने का एक प्रयत्न मैंने अवश्य किया है। जबकि साधु और श्रावक की अपेक्षा श्राविकाओं की संख्या अत्यल्प ही उपलब्ध है। 1 जैन स्थापत्य एवं कला भारत की सांस्कृतिक निधि का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनसे संस्कृति के प्रामाणिक इतिहास के पदचिन्ह प्राप्त होते हैं। इस खण्ड में ई.पू. की तीसरी शती से ई.सन् की बीसवीं शती के लगभग ७८ चित्रों में जैन श्राविकाओं के जैन संघ में दिये गये अवदानों का चित्रांकन है। इनमें सर्वप्राचीन चित्र ओसिया तीर्थ के प्राचीन जैन मंदिर का है। इनमें जैनाचार्य उपदेश दे रहे हैं एवं श्राविकाएँ सामने बैठी उपदेश श्रवण कर रही हैं। यह संभवतः तेइस सौ तिरानबे वर्ष पुरानी प्रतिमा का चित्र है। ई.पू. की द्वितीय शती में मथुरा के कंकाली टीले में चतुर्विध संघ प्रस्तरांकन में, जिन मूर्ति की चरण चौकियों पर, मथुरा के स्तंभों पर श्राविकाओं के चित्र हैं तथा श्राविकाओं द्वारा निर्मित जिन पूजा के लिए बने आयागपट्ट एवं श्रमण कृष्णर्षि की सेवा में भक्तिमती श्राविकाओं के चित्र तथा स्तंभों पर भी श्राविकाओं के प्राचीन चित्र उपलब्ध होते हैं। राजा खारवेल की रानी सिंधुला देवी द्वारा निर्मित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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