Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 691
________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास महासती श्री प्रतिभा श्री जी म. सा. 'प्राची' महासती पू. श्री केसर कौशल्या जी की फुलवाड़ी के दो सुन्दर पुष्प हैं। आपने सवा लाख का जाप कई बार किया हैं। तप के क्षेत्र में आपके कदम निरन्तर आगे बढ़ते रहे हैं। आपने ५५ अठाईयाँ, दो मासखमण तप धर्मचक्र के तप ४२ बेले २१ व्रत आदि तपस्या की हैं। २७ वर्षों से निरन्तर वर्षीतप, मान बेले के १२ बेले, ५० वर्षों से निरन्तर सावन भादवा २ माह एकांतर तप, आप ४५ वर्षों से प्रत्येक दीपावली पर तेले की तपस्या करते हैं। २५० प्रत्याख्यान, १ से १६ तक की की लड़ी, अनगिनत आयंबिल तप ओली संपन्न की हैं। २० स्थानक तप के ४८० उपवास, पखवाड़ा तप के १४५ उपवास, प्रति माह की २ चौदस, १२ वर्ष तक कुल २८८ उपवास, पौष दशमी के १२० उपवास, रोहिणी तप के ६१ उपवास, पुष्य नक्षत्र के ६१ उपवास ज्ञान पंचमी तप के ६६ उपवास, मौन ग्यारस के १४४ उपवास, बेले बेले तप के वर्षीतप ४ तेला, रत्नावली प्रहर तप, क्षीर समुद्र के ११ उपवास, कई तेले बेले एवं विविध प्रकार के तप आप संपन्न कर चुकी हैं। आप नित्य नियम पूर्वक सामायिक, प्रतिक्रमण आदि करती हैं सभी साधु सतियों की सेवा, रोगी, तपस्वी की सेवा में तत्पर रहती हैं। दान की भावना में उदार हैं। बड़ी प्रबल हैं। स्थानीय स्थानक भवन के निर्माण में भूमिपूजन का कार्य आपने अपने हाथों से प्रारंभ किया था। चारोली स्थानक (पूना) के लिए भी आपका योगदान महत्वपूर्ण रहा है। विकट से विकट परिस्थिति में भी धर्म की शरण एवं तप नहीं छोड़ा। पति के स्वर्गवास के समय भी आर्तध्यान नहीं किया अपितु प्रत्येक आगंतुक को नवकार मंत्र की माला फेरने की प्रेरणा करती रही। उन्हें संथारा करवाया और कैंसर जैसी भयंकर बीमारी के शिकार बने स्वपति की तन, धन और मन के साथ सेवा सुश्रूषा की। अल्प वय में स्वर्गवासी बनी, अपनी ज्येष्ठ पुत्री की बीमारी में बहुत सेवा की तथा उस कष्ट को हिम्मत पूर्वक सहन किया। साधु साध्वियों के विहार की सेवा में सदैव तत्पर रहती हैं। पद्मावती जैन महिला मंडल यशवंतपुर बैंगलोर की वर्षों तक उपाध्यक्षा भी रही हैं। तपस्या एवं संथारे के लिए आप अनेकों की प्रेरणा स्त्रोत रही हैं। आपकी धर्म पर अटल श्रद्धा हैं। रत्न कुक्षी माँ सुशीला का समस्त परिवार दान, शील, तप एवं भावना की अविरल साधना करते हुए जिन शासन की महती प्रभावना कर रहा है और मोक्ष मंजिल की ओर गतिमान है। वर्तमान में आपकी आयु लगभग ७० वर्ष है। हमारी भावना है कि आप हजारों साल जिएं और जिन शासन की प्रभावना करती रहें। आप साध्वियों के समान सफेद पोशाक ही पहनती हैं । १४० ७.१४८ लक्ष्मीदेवी श्यामसुखा : आपका जन्म तारानगर (राजस्थान) में वि. सं. १६७८ में हुआ था। आप श्रीमान् भेरूदानजी बोथरा एवं दीर्घ अनशन व्रतधारी चौथी देवी बोथरा की सुपुत्री एवं श्रीमान मदनचंद जी शामसुखा की धर्मपत्नी थी। तपोमार्ग पर आप निरन्तर अग्रसर थी। आपने ३० दिन की तपस्या ५ बार संपन्न की। इसी प्रकार १ से ६४ तप की लड़ी ५ दिन का तप ५० बार, ४ दिन का तप ५१ बार ३ दिन का तप ६२ बार, २ दिन का तप ७० बार १ दिन का तप १०५७ बार, २ वर्षीतप व ५ बार, बेले के साथ एकांतर तप किया। पखवाड़ा तप (५ वर्ष) एवं कर्मचूर तप (६ माह) संपन्न किया। अंत में २१ दिन का अनशन किया। ५ महाव्रतों को धारण किया तथा स्वर्गवासी बनी। ७.१४६ त्रिशलादेवी जैन : आपका जन्म छत्तीसगढ़ में संवत् १६८८ में हुआ था। आपके माता-पिता स्व. पानी बाई एवं स्व. श्री गणेशमल जी थे। आपने चौथी कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की। आपका विवाह दुर्ग (छत्तीसगढ़) निवासी, श्रीमान् भंवरलाल जी श्री श्रीमाल के साथ हुआ। आपने ८ साल की उम्र में गुरू मोहन ऋषि जी व गुरूणी उज्जवल कंवर जी के सान्निध्य में पच्चीस बोल व प्रतिक्रमण की शिक्षा ग्रहण की। १० वर्ष की आयु में - कोटा पधारे पू० गुरूणी जी मानकँवर जी से भक्तामर स्तोत्र, कल्याणमंदिर स्तोत्र, वीरत्थुई, दशवै-कालिकसूत्र के ४ अध्ययन, महावीर स्वामी जी का श्रीलोका तीर्थंकर का लेखा व अन्य थोकड़े कण्ठस्थ कर लिए । आपके तीन पुत्र व एक पुत्री हैं। श्री प्रवीण,जी श्री प्रदीप जी डा० प्रफुल्लजी व पुत्री सौ० सरोज बैद हैं। आपकी तीन पुत्रवधुएं ४ पोते व ८ पोतियां हैं। आपके दो बेटों और दो पुत्रवधुओं एवं ४ पोतों ने मासखमण किया, बाकी ने ६ तक की तपस्या की है। आपका पूरा परिवार प्रतिदिन सामायिक पक्खी प्रतिक्रमण तथा उस दिन रात्री भोजन का त्याग करते हैं। आपने हर वर्ष कुछ न कुछ तपस्या की है। नवपद की आयम्बिल की ओली, सावन में १२ बेला, एक तेला, भादवा में सात की तपस्या तथा कल्याणक For Private & Personal use only Jain Education International www.jainelibrary.org

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