Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 694
________________ 672 आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान समय तक महिला संघ चां० चौक की प्रधान रहकर महिला मंडल को अपनी सेवायें दी। आप अष्टमी चतुर्दशी को २४ घंटे का जाप करवाती रही। अंत में ८ घंटे का संथारा ग्रहण कर आप स्वर्गवासी बनी /१५१ ७.१५८ श्रीमती अनारकली जैन : आप श्री फूलचंद जी एवं श्रीमती पार्वती जैन की सुपुत्री एवं गूजर खेड़ी (हरियाणा) निवासी श्रीमान् रामगोपाल जी जैन की धर्मपत्नी थी। आपने २६.०१.२००४ को संथारे का संकल्प ग्रहण किया एवं २२.०३.२००४ को आपका संथारा पूर्ण हुआ। लगभग २ माह तक आपने समाधिपूर्वक आश्चर्यजनक ढंग से संथारा सफल बनाया। आप पूज्य सुदर्शन लाल जी मं० सा० के सुशिष्यरत्न राजर्षि श्री राजेंद्र मुनि जी की सांसारिक मातेश्वरी थी।३२ ७.१५६ श्रीमती केसरादेई जी : आप होशियारपुर निवासी श्रीमान् कन्हैयालाल जी एवं दुर्गादेई जी की पुत्रवधु एवं श्रीमान् बंसीलाल जी जैन की धर्मपत्नी थी। आपने १२ वर्ष की अल्प आयु में कच्ची सब्जी एवं फल खाने का नियम ग्रहण किया। आपने होशियारपुर महिला संघ का गठन किया। कई वर्षों तक मंडल की प्रधान रही। महिलाओं को शास्त्रों का ज्ञान कराया। मत्यु के समय गंदे ढंग से रोने (शापे) की प्रथा को तथा अनेक कुरीतियों को बंद किया। आप आजीवन रात्री चौविहार, दिन का पौरूषी तप सुबह शाम ५-५ सामायिकें, शास्त्र अध्ययन में लीन रहते हुए सादा जीवन व्यतीत किया। जीवन के अंतिम समय में २.३ वस्तुओं का सेवन करती थी। अंतिम समय में संथारे सहित आपका स्वर्गवास हुआ। सामाजिक एवं धार्मिक दष्टि से जिन शासन में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा। १५३ ७.१६० श्रीमती कांता जैन : आप वीरनगर दिल्ली निवासी स्व. लाला-रामलाल जी सर्राफ की पुत्रवधू एवं श्रीमान् यशपाल जी जैन सर्राफ की धर्मपत्नी थी। बचपन से ही धार्मिक गतिविधियों में आपकी रूचि थी। आपने अध्यात्मयोगिनी महाश्रमणी पू. श्री कौशल्या देवी जी महाराज से श्राविका दीक्षा अंगीकार की थी। स्वाध्याय में ही आपका अधिकांश समय व्यतीत होता था। जीवन की सांध्य वेला को निकट देखकर आपने पूर्ण अनासक्ति पूर्वक उत्कष्ट परिणामों के साथ जैन इतिहास चंद्रिका पू. डॉ विजय श्री जी महाराज 'आर्या' के मुखारविंद से संथारा ग्रहण किया। दिन प्रतिदिन मत्यु को निकट देखते हुए भी आपके परिणामों की धारा ऊँची बढ़ती रही। भगवान महावीर निर्वाण कल्याणक दिवस दिपावली २५ अक्टूबर ई. सन् २००३ वि.सं. २०५६ में आपका मंगल भावों के साथ संथारा पूर्ण हआ। आपकी धर्म भावनाओं का प्रभाव आपके पूरे परिवार पर है।५४ ७.१६१ श्रीमती चमेली देवी जैन : ___ आपके पिता स्व. श्री गोकुलचंद जी नाहर थे, तथा आप स्व. श्री पन्नालालजी भंसाली की धर्मपत्नी थी। आपका समस्त जीवन जप-तप स्वाध्याय दान, शील, तप भावना एवं संत-सतियों की सेवा में समर्पित था। आपके ३ पुत्र गरूदेव श्री सदर्शन लाल जी मं० के सुशिष्य महास्थविर पू. श्री प्रकाशचंद जी मं० सा० श्री प्रमोदचंद जैन एवं श्री अशोक कुमार जैन । आपने संथारे के प्रत्याख्यान के साथ ३ फरवरी २००४ को इस नश्वर देह का त्याग किया।१५ ७.१६२ श्रीमती सेवावंती जैन : आप जम्मू निवासी श्रीमान् जगदीशचंद्र जैन की धर्मपत्नी थी। आपके पिता श्री संताराम जैन (जम्मू) तथा माता लक्ष्मीदेवी जी थी। आपकी सास श्रीमती शांती देवी जैन तथा ससुर श्री भद्रीनाथ जैन (जम्मू) थे। आपके तीनों पुत्र श्री विनोदकुमार जी, श्री अशोक कुमार जी एवं श्री राकेश कुमार जी जैन उत्साही तथा धर्मनिष्ठ सुश्राविक हैं। आप नियमपूर्वक सामायिक, प्रतिक्रमण, प्रवचन श्रवण आदि संपन्न करती थी। आप उदार हृदय स्वभाव व्यवहार सरल, नम्र, की सन्नारी थी। आपने कई अठाईयाँ अपने जीवन काल में संपन्न की है। जैन इतिहास चंद्रिका डॉ पूज्य विजय श्री जी म. सा. आर्या ठाणा तीन से जम्मू चातुर्मासार्थ सन् २००५ में बिराजमान थे। सेवावंती जी नियमपूर्वक प्रेरणा दायी प्रवचनों का लाभ लेती थी। ८ अक्टूबर को प्रतिदिन की तरह प्रवचन श्रवण करने के लिए सेवावंती जी सामायिक लेकर कुर्सी पर बैठ गई उन्हें अचानक घबराहट हुई। चलते हुए प्रवचन में ही महाराज श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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