Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 683
________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास ए. किया । सन् १९७३ में 'ढोला मारू रा दूहा' का वैज्ञानिक अध्ययन विषय पर पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की । हिन्दी और राजस्थानी दोनों भाषाओं पर आपका समान अधिकार है। आपकी प्रकाशित मौलिक कृतियाँ हैं। हिन्दी साहित्य की प्रमुख कृति ढोला मारू रा दूहा का अर्थ व वैज्ञानिक अध्ययन तथा राजस्थानी भाषा में लिखित महावीर री ओलखाण हैं। सम्पादित कृतियाँ हैं समतादर्शन और व्यवहार, क्रान्तद्ष्टा श्रीमद् जवाहराचार्य, जैन संस्कृति और राजस्थान आदि । आप जयपुर से प्रकाशित 'जिनवाणी' मासिक पत्रिका व बीकानेर से प्रकाशित 'श्रमणोपासक' पाक्षिक की सम्पादिका हैं। आकाशवाणी जयपुर से आपकी हिन्दी व राजस्थानी में कहानियाँ तथा वार्ताएँ प्रसारित होती रहती हैं। सन् १६७५ से आप वीर बालिका महाविद्यालय जयपुर की प्रिंसिपल के रूप में शिक्षा क्षेत्र में अपनी सेवाएँ दे रही हैं। आप राजस्थान विश्वविद्यालय से सम्बद्ध डिग्री कॉलेजों के प्राचार्यों द्वारा राजस्थान विश्वविद्यालय की सीनेट की सदस्य निर्वाचित हुई हैं। आप कई सामाजिक, धार्मिक एवं शैक्षणिक संथाओं से सक्रिय जुड़ी हुई हैं। आप श्री एस. एस. जैन सुबोध बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय, जयपुर की प्रबंध समिति की सदस्य व महिला जैन उद्योग मंडल, जयपुर की अध्यक्षा हैं |११४ 661 ७.१२२ डॉ. श्रीमती किरण कुचेरिया : जोधपुर के एक सामान्य परिवार में जन्म लेकर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली जैसे विश्वविख्यात संस्थान में अस्थि - विज्ञान के एसोसियेट प्रोफेसर पद को सुशोभित कर रही हैं। डॉ. किरण स्व. श्री नथमलजी मेहता व रूपकंवरजी की सुपुत्री हैं। आपका जन्म १२ अप्रैल १६४४ में जोधपुर में हुआ । सन् १६६४ में आप जसवंत कॉलेज जोधपुर से प्राणिशास्त्र में एम. एस.सी. में प्रथम स्थान प्राप्त कर स्वर्णपदक विजेता बनी। उसी वर्ष आपको महारानी कॉलेज जयपुर में व्याख्याता के पद पर नियुक्त किया गया । १६६५ में विवाह हो जाने पर आप अपने पति डॉ. पी. आर. कुचेरिया (लाडनूँ) के साथ आगे अध्ययन के लिए इंग्लैड चली गई जहाँ आपने १६६६ में लंदन विश्वविद्यालय से पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। किसी विदेशी विश्वविद्यालय से यह उपाधि प्राप्त करनेवाली आप प्रथम राजस्थानी महिला थी। महाविद्यालय में अध्ययन के छहों वर्ष आपको प्रतिभासम्पन्नता की छात्रवत्ति मिलती रही और लंदन में शोधकार्य की अवधि में ब्रिटिश एम्पायर केंसर केम्पेन शिक्षावत्ति भी मिलती रही। आपको डब्लू. एच. ओ. रिसर्च व ट्रेनिंग शिक्षावत्ति ( फैलोशिप) भी प्राप्त हुई थी। आपका शोधकार्य बाल- रोगों से संबंधित था । भारत लौटने पर आपने एक वर्ष कौंसिल ऑफ सांईटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑफ इंडिया में पूल ऑफिसर का कार्य किया और फिर आपको ए.आई.आई.एम.एस नई दिल्ली में अस्थि विज्ञान के व्याख्याता के पद पर नियुक्ति मिल गई। आज उसी संस्थान में आप एसोसिएट प्रोफेसर भी हैं और मानवीय कौशिकानुवंशिकी (ह्यूमन साइटोजैनिटिक लैब) प्रयोगशाला की अधिकारी भी हैं। भारत भर में प्रतिवर्ष लगभग ६०० कौशिकानुवंशिकी के मामले आपके पास विश्लेषण के लिए आते हैं जिनके परिणाम अन्तरर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में उद्धत किये जाते हैं। सन् १६८२ में इंडियन जेसीज ने जवलच (टैन आउटस्टैडिंग यंग पर्सन्स) के राष्ट्रीय पुरस्कार से भी आपको सम्मानित किया है। अपने संस्थान में आपने भारत में प्रथम बार गर्भस्थ भ्रूण के लिंग निर्धारण की प्रविधि पर और अन्य राज्यधारक नस खराबियों पर अनुसंधान कार्य किया जिसके परिणाम १६७३ में भारत के सभी महत्त्वपूर्ण पत्रों प्रकाशित हुए। हाल ही में इस प्रविधि का दुरुपयोग होने लगा और लोग लड़की होने पर भ्रूण की हत्या करवाने लगे तो जागत महिला संगठनों ने इसके विरुद्ध कानून बनाने की माँग की। इस विषय में संगठनों ने और अनेक अंग्रेजी समाचार पत्रों ने भी आपका साक्षात्कार लिया । राष्ट्रीय शिक्षा एवं वैज्ञानिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद (NCERT) एन. सी. ई. आर. टी. नई दिल्ली ने भी इस विषय पर लगातार आपके भाषण कराये। उल्लेखनीय है कि आपके निजी चिकित्सालय चल रहे हैं। पति-पत्नी का ऐसा मणिकंचन संयोग सौभाग्य से ही मिलता है। वास्तव में डॉ. किरण हमारे समाज का गौरव हैं। ११५ ७.१२३ डॉ. प्रो. अरुणा सिंघवी : अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र तक अपनी प्रतिभा की रश्मियाँ बिखरने वाली सुश्री अरुणा सिंघवी जोधपुर के ख्यातनामा क्षय-रोग विशेषज्ञ डॉ. अचलमलजी सिंघवी व श्रीमती उमादेवी सिंघवी की सुपुत्री हैं। आपका जन्म सन् ११४८ में हुआ था। आप प्रतिभा संपन्न छात्रा थी। आपने बी.एस.सी. (१६६७) में व एम. एस. सी. ( प्राणीशास्त्र १६६६ ) में जोधपुर विश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया । तथा स्वर्ण पदक से अलंकृत हुई। तत्पश्चात् आपने जोधपुर विश्वविद्यालय में ही व्याख्याता का पद ग्रहण किया और अध्यापन के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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