Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 682
________________ 660 आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान बीमारियों से ग्रसित होते देखकर १६७६ तक आपने मधुमेह नाशक द्वीपिकाओं संबंधी शोधकार्य किया। भारत व कनाडा में अनुसंधान कार्य करते समय आपको अनेक प्रकार की छात्र-वत्तियाँ भी प्राप्त हुई जिनमें मुख्य हैं:- भारत सरकार द्वारा अनुसंधान प्रशिक्षण छात्रवत्ति, टोरंटो विश्वविद्यालय की शिक्षावत्ति व एन.आर.सी. एम. आर. सी. की शोध शिक्षा वत्तियाँ | आपके लगभग ४० शोधपरक लेख भारत, अमेरिका व यूरोप की प्रतिष्ठित शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। इतना अध्ययन करने के पश्चात् भी भारत लौटने पर आपने यहाँ की अज्ञानग्रसित देहाती जनता को गंदगी के बीच रहकर होते देखकर धनोपार्जन की अपेक्षा अपने आपको जनकल्याण में लगाना अधिक श्रेयस्कर समझा और सरकारी नौकरी का मोह त्यागकर आपने अपनी जन्मभूमि फलौदी में अपने ही खर्चे से मानव कल्याण केन्द्र की स्थापना की। उसके माध्यम से वे स्वास्थ्य संबंधी जनकल्याणकारी सेवाओं में आज भी संलग्न हैं। सर्वप्रथम आपने वहाँ स्वच्छता अभियान चलाया और स्थानीय प्रशासन व जनता को भी उसके प्रति सजग किया। इस समय आप प्रायः वहीं रहती हैं यद्यपि आपका परिवार जोधपुर में बस चुका है। आप एच.वी.एस. (मानव कल्याण सेवा) ट्रस्ट जोधपुर की प्रमुख संचालिका भी है। ७.११६ डॉ. किरण हरपावत : बालचिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. किरण हरपावत जोधपुर विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के एसोसियेट प्रोफेसर. डॉ. नरपतचंद सिंघवी और श्रीमती गुलाब कँवर सिंघवी की सुपुत्री हैं। आप का जन्म जोधपुर में सन् १६४८ में हुआ था। सन् १९७० में डॉ. सम्पूर्णानन्द आयुर्विज्ञान महाविद्यालय जोधपुर से एम.बी.बी.एस. करने के बाद आपका विवाह उदयपुर के डॉ. गणेश हरपावत से हो गया जो झेरॉक्स कॉर्पोरेशन रॉचेस्टर (सं.रा.अमेरिका) में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। अतः विवाह के तुरन्त बाद आप भी अमेरिका चली गई और वहाँ आपने बाल चिकित्सक की उपाधि प्राप्त की। अभी आप टैक्सास राज्य के लेविसविले में स्थित डॉक्टर्स क्लीनिक में अग्रणी बालचिकित्सक हैं। आप पूर्णतः शाकाहारी हैं और तन, मन, स्वभाव, सुशील से सौम्य एवम् मधुर हैं। अपने ससुराल के मूल स्थान नाई (उदयपुर) ग्राम में हरपावत दम्पति ने एक लाख से अधिक की धन राशि दान करके एक स्कूल भवन और कम्युनिटी सेंटर का निर्माण कराया है।११२ ७.१२० श्रीमती कमला सिंघवी : . नारी जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अधिकार पूर्वक लिखनेवाली और संतुलित विचार देनेवाली कृतिकार श्रीमती कमला सिंघवी का जन्म भागलपुर (बिहार) में ५ सितंबर १६३८ को श्री सूरजमलजी व श्रीमती हीरा बैद के एक प्रवासी राजस्थानी जैन परिवार में हुआ। आपकी शिक्षा कलकत्ते में हुई और विवाहोपरांत अपने पति ख्यातनामा विधिवेत्ता एवं सम्प्रति इंगलैंड में भारत के राजदूत डॉ. लक्ष्मीमलजी सिंघवी के साथ आप कुछ वर्ष जोधपुर में रहकर दिल्ली चली गई। वहीं जाकर आपने लिखना आरंभ किया और आपकी रचनाएँ देश की सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं व साप्ताहिकों में छपने लगी। अपने पति एवं उनके साहित्यिक मित्रों के प्रोत्साहन से आपने अपनी प्रथम कृति 'नारी भीतर और बाहर' सन १६७२ में दिल्ली से प्रकाशित कराई। हिन्दी जगत में अब तक आपकी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ___ "दाम्पत्य के दायरे", इस पुस्तक की सराहना हिन्दी के अनेक प्रतिष्ठित विद्वानों ने मुक्त कंठ से की है। आपकी एक कहानी 'वह कुछ भी तो नहीं कह गया' को प्रथम महिला-मंगल पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। आपके कुछ निबंध विश्वविद्यालयों की पाठ्यपुस्तकों में भी संकलित हुए हैं। हिन्दी की प्रसिद्ध लेखिका शिवानी ने आपकी रचनाओं को भारतीयता से ओतप्रोत बताकर उनकी सराहना की है ।११३ ७.१२१ श्रीमती डॉ. शांता भानावत : आधुनिक जीवन की सुविधाओं से दूर एक छोटे से कस्बे में उत्पन्न होकर राजधानी जयपुर के एक महाविद्यालय के प्रिंसिपल पद को सुशोभित करनेवाली श्रीमती डॉ. शांता भानावत का जन्म ६ मार्च १६३६ को छोटी सादड़ी (जिला-चित्तौड़गढ़) में श्री गोटीलालजी बया के घर हुआ। जब आप नवीं कक्षा में पढ़ती थी, तभी २३ वर्ष की अवस्था में आपका विवाह हो गया। अपने पति • डॉ. नरेन्द्र भानावत की प्रेरणा से आपने अपना अध्ययन जारी रखा और सन् १६६७ में राजस्थान विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,

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