________________
664
आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान
७.१२६ कु. निशा जैन :
आप चंडीगढ़ के पास पंचकूला में निवास करती हैं। श्रमण संघीय चतुर्थ पट्टधर आचार्य डॉ, शिवमुनि जी महाराज के सान्निध्य में चंडीगढ़, जालंधर, जम्मू चातुर्मास में आपने साधना संपन्न की। चातुर्मासों में विशिष्ट आराधना और साधना संपन्नता
के साथ साधना में विकास हुआ। चण्डीगढ़ में भक्ति और प्रार्थना का स्वरूप प्रकट हुआ । पुनः पुनः साधना करते हुए नमस्कार मंत्र, . लोगस्स और णमोत्थुणं की साधना से समाधि में प्रवेश करने की विधि प्राप्त हुई। शासनदेव एवं आचार्य श्री की कपा से सामायिक
करते हुए मन और आत्मा की शुद्धि प्राप्त हुई, तथा भेद-विज्ञान की साधना का मार्ग नज़र आया । कु. निशा जैन अपनी लघु वय में अध्यात्म मार्ग पर निरन्तर गतिशील हैं।१२२ ७.१३० चंपा बहन :
__ आप अध्यात्म मार्ग की निर्मल साधिका हैं। सौराष्ट्र सोनगढ़ निवासी गुरूदेव कानजी स्वामी के सत्संग से आपने अध्यात्म का वेग प्राप्त किया। संवत् १६६३ में आपको जातिस्मरण ज्ञान की उपलब्धि हुई। लौकिक व्यवहार से दूर रहते हुए चंपा बहन ने अपना संपूर्ण जीवन आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर किया। आपके द्वारा निस्सत ज्ञान कण बहन श्री के वचनामत के रूप में प्रकाशित है।१२३ ७.१३१ श्रीमती सुषमा दुगड़ :
आप महाराष्ट्र के नासिक शहर की निवासी हैं। आप श्रीमती मदनबाई इंदरचंद जी दुगड़ की पुत्रवधू डॉ. रिखवचंद जी दुगड़ की धर्मपत्नी एवं आनंद दुगड़ की मातेश्वरी हैं। आपने एम.डी. की शिक्षा प्राप्त की है। आप अस्थमा, टी.बी. तथा छाती रोग विशेषज्ञ हैं। आपने सामायिक, प्रतिक्रमण एवं अनेक थोकड़े कंठस्थ किये हैं। सन्मति तीर्थ पूना से आयोजित पंच वर्षीय प्राकत परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। अखिल भारतीय स्तर एवं तत्व ज्ञान की विभिन्न परीक्षाओं में विशेष पुरस्कार प्राप्त किये हैं। प्रत्येक चातुर्मास में प्रवचन श्रवण का लाभ लेती हैं। अनेक धार्मिक एवं सांस्कतिक कार्यक्रमों की संचालिका हैं। उपासिका युवा बहूमंडल की संस्थापिका हैं। आपने प्रश्नमंजूषा का पाँचवा भाग, सुखी जीवन का रहस्य, 'हास्य' पुस्तक प्रकाशित करवायी है, तथा तीस चालीस स्वरचित कविताओं (अप्रकाशित) की रचयिता हैं। आप अपने जीवन के सोलहवें वर्ष से ही समाज सेवा में अग्रसर है। इसी कड़ी में १५२० संस्थाओं के विविध पदों पर आप कार्यरत हैं। आपने स्वयं भी लिखित रूप में शादी की, दहेज प्रथा का विरोध किया तथा सिद्धांतों पर आधारित विवाह को महत्व देकर सातारा क्षेत्र में विवाह संबंधी क्रांति की।
आदिवासी क्षेत्रों में २५० बच्चों को मदद दी। लोक विकास संस्था में मेडिकल एवं कम्प्यूटर का सहयोग प्रदान किया। पल्स, पोलियों, तंबाकू, टी.बी. क्षयरोग, दहेज प्रथा, दमा आदि विषयों पर लेख, व्याख्यान तथा टी.वी. पर कार्यक्रम का प्रसारण भी संपन्न किया। लगभग उन्नीस स्थानों पर स्वास्थ सेवायें प्रदान कर रही हैं। लगभग सत्रह सामाजिक संस्थाओं में आप विविध प्रकार की सेवाएँ प्रदान कर रही हैं। इन सेवाओं को प्रदान करते हुए आपने विविध सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त किये हैं। नवरचना हाईस्कूल, नासिक से आदर्श शिक्षिका का पुरस्कार तथा विविध क्षेत्रों में ग्यारह अन्य पुरस्कार भी आपने प्राप्त किये हैं। इसी प्रकार प्रति वर्ष ५० दिन का एकासना तप करती हैं। आपने एक वर्ष एकासना तप, एकासने का वर्षीतप ११ व्रत आदि तपस्यायें संपन्न की है। आपका जीवन एक आदर्श समाज सेविका, स्वाध्यायी श्राविका एवं तपस्विनी के रूप में सर्वविदित हैं।१२४ ७.१३२ श्रीमती धापूबाई गोलेछा :
धापूबाई का जन्म १६१६ ईस्वी में उदयपुर के चित्तौड़ जिले के भदेसर के पास लसड़ावन ग्राम में हुआ था। आपके पिता लेहरूलाल जी एवं माता घीसीबाई थी। ६ वर्ष की छोटी उम्र में ही घुड़सवारी करती थी। १४ वर्ष की उम्र में आपका विवाह बेंगलोर निवासी श्रीमान् जसराजजी गोलेछा के साथ संपन्न हुआ। आपने गुरूओं के सान्निध्य में दीर्घ तपस्याओं का रिकार्ड बनाया। आपने ६१, ५१, ८२, १५१, ६१, १११, १२१, १५, २१, ३१, ११ कर्मचूर की अठाईयाँ, छ: काया का तप, चंदनबाला के तेले, नवनिधि तप, अर्जुनमाली के बेले, रस बेले मान बेले, परदेशी राजा के बेले, सिद्धि तप आदि विविध तपस्याएँ की। आपने ५१ और ६१ की तपस्या घर पर ही संपन्न की थी। लोगों ने अफवाह फैलाई कि घर पर किया हुआ तप क्या सच होगा? इस चुनौती पर चंपा बहन की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org