Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 685
________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास 663 श्रीमती कमला देवी दूगड़ को समाज की प्रथम महिला डॉक्टर होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दिल्ली में आपकी डिस्पेंसरी में अनेक स्त्री-पुरुषों एवं साधु-साध्वियों का समुचित इलाज होता था।'१६ ७.१२७ श्रीमती मणालिनी साराभाई : श्रीमती मणालिनी एक उज्जवलतम नीहारिका सी भारत के सांस्कृतिक नभमंडल में चमकती रही हैं। भारत की पारम्परिक नत्य शैली को आपका अवदान प्रेरणास्पद है। आपके पिता श्री स्वामीनाथन मद्रास के लब्ध प्रतिष्ठित वकील थे। माता श्रीमती अम्म स्वामीनाथन थीं। भारतीय लोकसभा की पन्द्रह वर्ष तक सदस्य रही। बड़ी बहन डॉ लक्ष्मी ने नेताजी सुभाष की विप्लवकारी आजाद हिन्द फौज में महिला ब्रिगेड की कमान संभाली थी। मणालिनी जी ने प्रथम नत्य-पाठ श्रीमती रूक्मणि देवी अरुण्डेल के मद्रास स्थित कला क्षेत्र में सीखा। परन्तु उन्हें शीघ्र ही स्वीट्जरलैड जाना पड़ा वहाँ मणालिनी जी ने पाश्चात्य शैली के नत्यों, बैलों एवं ग्रीक नत्यों का अभ्यास किया उस वक्त उनकी आयु मात्र बारह वर्ष की थी। ____ संवत् १६६६ में भारत आकर गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के सान्निध्य में शांति निकेतन में आपने भारतीय शैली के नत्य सीखे । यहाँ रहकर भरतनाट्यम, मोहिनी अट्टम एवं कथकली में आपने महारत हासिल की। लोकृनत्य शैली का विशेष अध्ययन किया। जावा की पारम्परिक नत्य शैली में पारंगत हुई। रंगमंच की विशिष्ट शिक्षा हेतु आप अमरीकी नाट्य कला अकादमी से जुड़ी। आपने इन अपरिमित अनुभवों का लाभ उठाकर अपनी स्वतंत्र कोरीयोग्राफी विकसित की । भारतीय एवं विदेशी रंगमंचों पर आपने अनेक बार नत्य प्रदर्शन कर प्रशंसा अर्जित की। संवत १६६८ में बेंगलोर में आपका नत्य प्रदर्शन हुआ। तब विक्रम साराभाई डॉ.सी.बी. रमण के सान्निध्य में वहीं शोध-रत थे। मणालिनी जी का एक नत्य कार्यक्रम आपने देखा और मुग्ध हो गए। वही परिचय प्रगाढ़ होकर संवत् १६६६ में सदा सदा के लिए दोनों को परिणय सूत्र में बाँध गया। अहमदाबाद आकर संवत् २००५ में मणालिनी जी ने नत्यकला के संवर्धन हेतु "दर्पन नाट्य एवं नत्य शिक्षण संस्थान की स्थापना की। डॉ. विक्रम साराभाई के सहयोग से जल्द ही इस संस्थान ने अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की। "चंडालिका" नामक नत्य नाट्य को नवीन भावभूमि के साथ प्रस्तुत किया है। मनुष्य नत्य नाट्य में मणालिनी ने वर्तमान की पीड़ा व संघर्ष के दंश को बड़ी सफलता से मुखिरित किया है। संवत् २०२२ में भारत सरकार ने आपको “पद्मश्री" की उपाधि से सम्मान किया है। संवत् २०४३ में शांति निकेतन ने उन्हें देशिकोत्तम के सम्मान से विभूषित किया है। मेक्सिको एवं फ्रांस की सरकारों ने नत्य क्षेत्र में विशिष्ट सेवा के लिए उन्हें स्वर्ण पदक प्रदान किये हैं। ओसवाल कुल इस नारी रत्न को पाकर धन्य हुआ है। सूरत के जन सत्याग्रह में भाग लेने के फलस्वरूप आप गिरफ्तार कर ली गई एवं दंडित हुई। आपने दण्ड स्वरूप जुर्माना न देकर जेल जाना पसन्द किया।१२० ७.१२८ श्रीमती कमलाबाई : __ आप श्रीमान् सागरमल जी जैन की धर्मपत्नी है। श्रीमती कमलाबाई जैन का जन्म विक्रम संवत् १६६६ फाल्गुण शुक्ला पूर्णिमा को मध्यप्रदेश के सुजालपुर नगर में हुआ था। लगभग पन्द्रह वर्ष की आयु में आपका विवाह श्रेष्ठी राजमलजी शक्कर वाले के जयेष्ठपुत्र सागरमल जी जैन के साथ हुआ। आपके दो पुत्र और एक पुत्री वर्तमान में हैं। आप एक श्रद्धाशील और धर्म निष्ठ सुश्राविका हैं। आपने अपने श्वसुर एवं सास से प्राप्त संस्कारों का वपन अपनी संतानों में किया। आपके पति श्री सागरमल जी आपसे विवाह के समय मात्र कक्षा आठ उत्तीर्ण थे, किन्तु उनकी विद्या अभिलाषा और आपके सहयोग के कारण आज वे देश-विदेश के जैन विद्वानों में शीर्षस्थ विद्वान् माने जाते हैं। उनकी इस अध्ययन वत्ति के पीछे आपका समर्पण एवं त्याग महत्वपूर्ण है। कहते है हर महापुरूष के पीछे एक नारी होती है; यदि इस उक्ति को स्वीकार करें तो डॉ सागरमल जैन के पष्ठबल में आप ही हैं। डॉ. सागरमल जी जैन से अध्ययन हेतु साधु-साध्वी वर्ग की निरन्तर उपस्थिति रहती है। उन सबकी और विद्यार्थी एवं शोधार्थियों की सेवा में आप सदैव संलग्न रहती है। आप न केवल डॉ साहब अपितु उनके शिष्य वर्ग की सुख-सुविधाओं का भी सदैव ध्यान रखती हैं। सभीको आपकी मातछाया और वात्सल्य प्राप्त होता है। आपने शताधिक जैन साधु साध्वियों की सेवा का लाभ लिया है और आज अपनी ४७ वर्ष की वय में इस हेतु सदैव तत्पर रहती हैं।१२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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