Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 662
________________ 640 आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान ७.२६ श्रीमती कम्पादेवी जैन आप श्री एस. एस. जैन सभा विश्वास नगर दिल्ली के भूतपूर्वप्रधान स्व. श्री किशनलाल जी जैन की धर्मपत्नी हैं। आपके सुपुत्र अशोक जैन समाज के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन है। स्वयं कम्पादेवी ने जैन स्थानक के निर्माण करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हर वर्ष संत सतियों के चातुर्मास करवाने में प्रयत्नशील रहती थी। दीन दुखियों के प्रति आपका हृदय करूणा वत्सल था। आपका निधन २६.४.२००३ को हुआ था। 6.३० श्रीमती मोहनबाई मेहता : आप श्रीमान् चुन्नीलाल जी एच. मेहता की धर्मपत्नी हैं। आपकी आयु ५७ वर्ष की थी। कई संस्थाओं की स्थापना में आपकी प्रेरणा एवं द्रव्य सहयोग रहा था, कई शिक्षण संस्थायें आपके द्वारा पालित एवं पोषित थी। आप धार्मिक एवं नैतिक संस्कारों पर विशेष बल देती थी। परिवार के सभी सदस्यों के लिए आप धर्म गुरू के रूप में मार्गदर्शक थी। आप धर्मनिष्ठ, समाजसेवी, सद्गहिणी, उदारमना, आदर्श सुश्राविका थी। आपके देहावसान पर देश के अनेक राजनैतिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक संस्थाओं के गणमान्य व्यक्तियों ने हार्दिक श्रद्धांजली समर्पित की थी।२४ ७.३१ श्रीमती फूलावंती जैन : आपका जन्म १६२६ में हुआ था। आप नई दिल्ली निवासी श्रीमान् रोशन लाल जी जैन की धर्मपत्नी थी। आपका दो पुत्रियाँ, एक पुत्र का परिवार था। आप प्रतिदिन नित्य नियम व रात्रि भोजन का त्याग करती थी। सुबह शाम प्रतिक्रमण करती थी। प्रतिदिन संत सतियों के दर्शन करती थी आपने दस फल ही खाने के लिए रखे थे। स्यालकोट छावनी पाकिस्तान में सन् १८४१-१८४७ तक वह एक मन दही की छाछ प्रतिदिन लोगों को पिलाती थी। आप मेहमानों की दिल खोलकर सेवा करती थी। आपने जैन भवन नं. १२ नई दिल्ली, अहिंसा भवन (राजेन्द्र नगर), अहिंसा विहार (डिफेंस कॉलोनी) को खरीदने में जैन समाज को महत्वपूर्ण योगदान दिया था। आप ८ माह तक बाजु व टांग टूटने से बीमार रही। १६७८ में आपका स्वर्गवास हुआ तथा निधन से तीन दिन पूर्व ही मेहरोली दादावाड़ी के दर्शन पति के साथ आपने किये थे। त्याग तथा सेवा की वह प्रतिमूर्ति थी।५ ७.३२ श्रीमती लाभदेवी जैन : ___ आप अमतसर निवासी श्रीमान् हरजसराय जी जैन की धर्मपत्नी थी। आपकी कुल आयु ६२ वर्ष की थी। आपका विवाह १६१२ में हुआ था। आपने श्री सोहनलाल जी जैन धर्म प्रचारक समिति, श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम और श्रमण मासिक के लिए अनेक सेवाएँ प्रदान की। पिंगलवाड़ा के अपाहिज़ों, अंध विद्यालय के छात्रों, गौशालाओं तथा जीवदया मंडलियों की सुविधा सहायता का उन्हें सदा स्मरण रहा। आपने चिंतन-मनन तथा जिज्ञासा के बल पर ही अपना विकास किया। मानवता को विभाजन करने के पक्ष में आप कभी नहीं रही। आपके घर का वातावरण बहुत ही सौम्य, स्नेहिल, माधुर्यपूर्ण था आपका परिवार धर्म के प्रति अगाध निष्ठावान् व पूर्णरूपेण समर्पित था। गहस्थ जीवन से हटकर पारमार्थिक कार्यों से जुड़कर आपने आपनी महक से वातावरण को सुवासित कर दिया था।२६ ७.३३ श्रीमती शीला सोनी (खत्री) : ___ आप नालागढ़ निवासी श्रीमान् वैद्य गुरूदासमल जीसोनी तथा श्रीमती नंदरानी की सुपुत्री हैं। आपकी जन्म तिथि १७.८.५१ है। आपने बी. ए. एवं जे.बी.टी. (जुनियर बेसिक टीचर ट्रेनिंग) की शिक्षा प्राप्त की है। १७ वर्ष की आयु से ही आप वी एवं पूवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं को पढ़ाती रही हैं। २२वें वर्ष में आपने ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया। आजीवन रात्रि को चौविहार तप तथा श्राविका के १२ व्रतों को भी इसी उम्र में ग्रहण किया। आप सुबह शाम प्रतिक्रमण तथा दो-दो सामायिक करती हैं। आपने ३० शास्त्रों का स्वाध्याय किया है। श्री रघुवरदयाल जी म० श्री के शिष्य राम मुनिजी म. सा. से आपने गुरूधारणा ली तथा जैन धर्म की सारी शिक्षा उन्हीं से ग्रहण की। स्वाध्याय के प्रति अत्यधिक रूचि होने के कारण आपने पदोन्नति के सारे प्रलोभनों का त्याग कर दिया ।२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,

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