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७. ८३ श्रीमती गोविन्द देवी पटवा :
जैन वीर महिलाओं में कलकत्ता की श्रीमती गोविन्द देवी पटवा का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। गांधी जी के आव्हान पर महिलाओं ने आंदालेन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। श्रीमती पटवा ने बड़ा बाजार कलकत्ता की विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देने वाले जत्थों का वीरतापूर्वक नेतृत्व किया था । सन् १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन में श्रीमती पटवा ने करो या मरो मंत्र के साथ बड़े उत्साह से भाग लिया । फलतः आपको गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में आपको अनेक यातनाएं सहनी पडी । ७६
७.८४ अमर शहीद जयावती संघवी :
अहमदाबाद गुजरात की कुमारी जयावती संघवी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की दीपशिखा थी, वह अपना पूरा प्रकाश दे भी नहीं पाई थी, कि उनका अवसान हो गया । ५ अप्रैल, १६४३ को अहमदाबाद नगर में ब्रिटिश शासन के विरोध में एक विशाल जुलूस निकाला जा रहा था। इसमें प्रमुख भूमिका जयावती संघवी निभा रही थी। अचानक पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़ने आरंभ कर दिए। नेतत्व करती जयावती पर इस गैस का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उनकी मृत्यु हो गई। भारत छोड़ो आंदोलन में भी आपने सक्रिय भाग लिया था, और इसके लिए उन्होनें एक माह की जेल यात्रा भी की थी 199
आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान
७.८५ श्रीमती मदुला बेन साराभाई:
श्रीमती मदुला बेन साराभाई को स्वराज्य की भावना विरासत में मिली थी। उनके पिता श्री अम्बालाल साराभाई पूज्य बापू के परम भक्त थे । माता सरला देवी ने दांडी यात्रा के समय महिलाओं का नेतत्व किया था। घर में देश भक्ति का वातावरण होने से बचपन से ही वे देश भक्ति और स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ गई थी। गुजरात की महिलाओं में जागति लाकर उन्हें संगठित एवं प्रशिक्षित करके स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढाने मे मदुला बेन सदैव सक्रिय रही। १६२७-२८ के सत्याग्रह में अहमदाबाद की युवा पीढ़ी के संचालन में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई थी विदेशी कपड़ों की होली जलाने, शराब की दुकाने बंद कराने तथा धरना टोलियों के संगठन और संचालन में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी । १९४१ - ४२ में सत्याग्रहियों की देखभाल करने के लिए गांधी जी ने उन्हें नगर समिति का प्रमुख बनाया था। आंदोलनों का नेतत्व करने के कारण उन्हें दो बार जेल जाना पड़ा। कस्तूरबा गांधी के निधन के बाद गठित हुए कस्तूरबा गांधी ट्रस्ट में वे संगठन मंत्री बनीं। १९४१ के अहमदाबाद, १६४६ के मेरठ व १६४६-४७ के पंजाब व बिहार के साम्प्रदायिक दंगों के समय राहत कार्यों में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था |
७.८६ श्रीमती माणिक गौरी:
श्रीमती माणिक गौरी प्रसाद गांधीवादी नेता श्री छोटालाल चेला भाई की धर्मपत्नी थी। श्रीमती गौरी अपने पति के कंधे से कंधा मिलाकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेती रही। शराब बंदी के लिए उन्होंने हजारों समर्पित स्वयंसेविकाओं को तैयार किया । स्व सूत काती थी । १९२१ में जब विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई तो अपने पति के कपड़ों के साथ आपने अपने २००० रुपए के विदेशी कपडे भी जला दिए थे । ७६
७. ८७ श्रीमती राजमती पाटिल:
'राजूताई' या 'राजमती ताई' के उपनाम से विख्यात महाराष्ट्र की क्रांतिकारी महिला श्रीमती राजमती पाटिल ने अपने कार्यकलापों से क्रांतिकारियों को भरपूर सहयोग दिया। राजमती उनके पोस्टर और बुलेटिन तैयार कर के बांटने का कार्य करती थीं । ६ अगस्त १६४३ को तिलक चौक, शोलापुर में आपने तिरंगा झंडा फहराया, । फलतः आपको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेल से रिहा होने के पश्चात् उन्होंने स्वेच्छा से क्रांतिकारियों की मदद करने का दायित्व संभाला। राजमती भूमिगतों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनका सहयोग कर रही थी । यहीं उन्होनें हथियार चलाना सीखा। वे क्रांतिकारियों को खाद्य सामग्री आदि की आपूर्ति भी करती थी। अनेक अवसरों पर राजमती ताई ने क्रांतिकारियों को भरपूर सहयोग दिया । ६°
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