Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 664
________________ 642 आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान कॉलोनी में बड़ी ही श्रद्धा से पू० शिवाचार्य जी के दर्शन व वंदन हेतु पधारी थी। २ जुलाई २००१ को वीर नगर चार्तुमास के प्रथम दिन की ही धर्म सभा में आपका निधन हो गया । ७७ वर्षीय श्रीमती सुरेन्द्र कुमारी जी बड़ी निष्ठावान समाज सेवी व धर्म थी। आप दानवीर थी। समाज ने सदैव आपको सिर आखों पर बिठाया । ७.४१ श्रीमती आनंदी बाई : आप घोटी (महाराष्ट्र) निवासी श्रीमान रमेश पारसमल पिंचा की माता जी तथा भंवरीलाल पिंचा की धर्मपत्नी थी। आपकी उम्र ६० वर्ष की थी। आपका अल्प बीमारी से १२ अगस्त को स्वर्गवास हुआ। स्वर्गवास के कुछ घंटे पहले जागरूकता के साथ आपने प्रत्याख्यान किये। आपने अपने जीवन में उपवास बेले तेले पंद्रह की तपस्या आडंबर रहित की। आपकी दान की भावना सदैव रही। समाज के साथ साथ जैन संतों की सेवा में आप पीछे नहीं रही। श्री कंचन कुंवरजी म.सा के वर्षावास में आपने शीलव्रत के प्रत्याख्यान अंगीकार किए। जैन अजैन सभी ने श्रद्धा से घोटी की इस सौभाग्यवती माता को अक्षुपूर्ण विदाई दी।३५ ७.४२ डॉ. जया जैन : श्रीमती जया जैन का जन्म २७ फरवरी १६७६ को हुआ था। श्रीमती जया श्रीमान् कुलभूषणजी एवं श्रीमती कुशलजी की सुपुत्री हैं तथा जम्मू निवासी श्रीमान् रविकुमार जी एवं श्रीमती सुषमा ओसवाल की पुत्रवधु एवं श्रीमान् अमित ओसवाल की धर्मपत्नी हैं। आपने मणिपाल कॉलेज से बी.डी.एस. की डिग्री प्राप्त की है। तत्पश्चात मैसूर के एक अनुभवी डॉ. के साथ कार्य करते हुए अच्छी योग्यता प्राप्त की है। जम्मू में डेंटल विज़न' के नाम से अपना डेंटल क्लिनिक चला रही हैं। अपने व्यवसाय में अधिक निखार लाने के लिए आप अभ्यास हेतु यु.के. गई है। आप प्रसन्नचित, साहसी एवं दढ़ परिश्रमी महिला हैं। व्यवसाय के साथ ही आपका पारिवारिक, सामाजिक एवं धार्मिक जीवन में भी अद्भुत सामजस्य है। ३६ ७.४३ श्रीमती मालहणा देवी : प्रसिद्ध कवि माघ की धर्म पत्नी थी। बल्लालपंडित द्वारा रचित 'भोज प्रबंध में दोनों की परम दानशीलता का वर्णन है। लक्ष्मी की उन पर असीम कपा थी। एक बार राजा भोज कवि माघ की कीर्ति सुनकर उनका वैभव देखने श्रीमाल नगर आये। तभी से वे अनन्य मित्र बन गए। एक समय ऐसा आया जब दान देते देते माघ दरिद्र हो गया। वह राजा भोज की धारा नगरी में जा बसा। कवि माघ ने 'शिशुपालवधम्' नामक ग्रंथ की रचना की थी तथा अपनी पत्नी माल्हणादेवी के हाथ राजा भोज के पास भिजवाई। राजा भोज ने महाकाव्य खोलकर प्रथम श्लोक पढा तो मंत्रमग्ध हो गया। राजा भोज ने माल्हणादेवी को एक लाख स्वर्णमद्रायें भेंट में देकर विदा किया। जनश्रुति है कि माल्हणादेवी को राह में याचक मिल गए। उसने राजा से प्राप्त धन उनमें बांट दिया। घर पहुँचने पर उसने सारा वत्तान्त महाकवि को बताया। महाकवि ने प्रशंसा करते हुए कहा 'तुम मेरी मूर्तिमती कीर्ति हो । पतिपरायणा माल्हणादेवी ऐसी परम. दानवीर थी।३७ ७.४४ गौतमी बीबी : आप राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द की बहन और बड़ी विदुषी जैन महिला थी। आपने 'श्रीमद् रत्नशेखर सूरि कत गुणस्थान क्रमारोहणनामक ग्रंथ की रचना की जिसमें मूल संस्कत ग्रंथ का अनुवाद और व्याख्या है। यह ग्रंथ संवत् १६५४ में प्रकाशित हुआ था। इनके बारे में अधिक विवरण उपलब्ध नहीं है। ७.४५ श्रीमती कौशल्या जैन : आप उदयपुर निवासी श्रीमान् राजमलजी कोठारी की धर्मपत्नी हैं। आपने डॉ उदयचंद्र जैन के निर्देशन में समीर मुनि का व्यक्तित्व एवं विषय इस विचार पर पी.एच.डी. की है। आपको बेस्ट टीचर' के अवार्ड से राजस्थान बोर्ड की ओर से सम्मानित किया गया है। ७.४६ डॉ. वीणा जैन : आप जालंधर निवासी श्रीमान् इंद्रकुमारजी जैन एवं श्रीमती पुष्पा जैन की सुपुत्री हैं। दिल्ली पश्चिम विहार निवासी इंजीनियर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,

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